सरकार बहादुर! सांस लेने में दिक्कत है तो क्या ‘गर्व’ से सीना फुलाकर काम चलाएं
बीते साल दिसंबर आते-आते यह साफ हो गया था कि इस महामारी से बचाव के लिए सबसे ज्यादा उम्मीद किन पांच-छह वैक्सीनों से है उनमें से दो हमारी झोली में हैं. एक कोविशील्ड थी और दूसरी कोवैक्सिन. कोविशील्ड को एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड ने विकसित किया था और हमारे यहां सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को इसे बनाने का लाइसेंस दे दिया था जो वैक्सीनों की दुनिया में सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरर है .उधर, कोवैक्सिन हमने खुद ही बनाई थी. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सहयोग के साथ हैदराबाद स्थित देसी कंपनी भारत बायोटक ने इसे विकसित किया था.
लेकिन नहीं, हमने यह नहीं किया. और कोढ़ में खाज देखिए कि सरकार मैत्री अभियान चलाने लगी. वैक्सीन के करीब छह करोड़ डोज सीरिया, अल्बानिया जैसे सुदूर देशों को भेज दिए गए. क्यों? क्योंकि यहां भी प्राथमिकता छवि प्रबंधन थी. सरकार बहादुर का मानना था कि सीने से सांस जा रही हो तो आप गर्व से सीना फुलाइए क्योंकि हम दुनिया की मदद कर रहे हैं. बीते तीन महीने में हमने 13 करोड़ टीके खुद के लिए रखे तो छह करोड़ से ज्यादा बाहर भेज दिए.
काश, इस मामले में हम अमेरिका से ही सीख लेते जिसने वैक्सीन के रॉ मैटेरियल से लेकर बनी-बनाई वैक्सीन तक हर चीज तभी बाहर जाने दी जब उसकी अपनी जरूरत पूरी हो गई. आज वह अपनी 50 फीसदी से ज्यादा आबादी का टीकाकरण कर चुका है. हम बमुश्किल 15 फीसदी तक पहुंच पाए हैं और इस रफ्तार से चले तो अगली गर्मियों तक भी 75 फीसदी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य दूर की कौड़ी ही है. अगर ऐसा हुआ तो दूसरी के बाद कोरोना की तीसरी लहर भी अवश्यंभावी दिखती है.
लेकिन अभी भी ज्यादा बड़ी प्राथमिकता छवि प्रबंधन है. दूतावासों और उच्चायोगों को निर्देश दिए जा रहे हैं कि वे अपने-अपने यहां के मीडिया में छपने वाली खबरों का पुरजोर खंडन करें. टाइम से लेकर गार्डियन और वाशिंगटन पोस्ट तक तमाम अखबारों में छपती भारत की बदहाली की खबरों के बारे में बताया जा रहा है कि यह सरकार बहादुर को हटाने की अंतरराष्ट्रीय साजिश है. जब इन्हीं पत्रिकाओं और अखबारों में आपकी तारीफ छपती थी तो इसे पश्चिम में हमारा डंका कहा जाता था. डंका अब डंक हो गया.
कांग्रेस मार्का धर्मनिरपेक्षता तो हमें कभी न सुहाई, लेकिन आपकी शर्मनिरपेक्षता ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए सरकार बहादुर.
(लेखक विकास बहुगुणाः वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)