हिंदुओं की आबादी हुई कम, देश के इन राज्यों में मिल सकेगा अब अल्पसंख्यक का दर्जा

  • जम्मू और कश्मीर, लक्षद्वीप, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम,अरूणाचल और पंजाब आदि राज्यों में हिंदु नहीं रहे बहुंसख्यक 
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहाः- केंद्र की तरह ही राज्य सरकारें भी अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान कर उन्हें दे सकती हैं दर्जा 

TISMedia@NewDelhi केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्य सरकारें भी अपने यहां की अल्पसंख्यक आबादी की पहचान कर उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकती हैं। ऐसे में अब हिंदू सहित दूसरे धर्म के लोगों को भी अल्पसंख्यक घोषित किया जा सकता है। सरकार के इस हलफनामे से साफ है कि अगर किसी राज्य में हिंदू या दूसरे धर्म की आबादी बहुमत में नहीं है तो उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है। अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त करने के बाद समुदाय भी अपने शैक्षणिक संस्थान खोल सकेंगे और उनका प्रशासन कर सकते हैं।

PEW Research Centre की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 28 राज्यों में हिंदू समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं। जबकि मुस्लिम आबादी जम्मू और कश्मीर एवं लक्षद्वीप में बहुसंख्यक है। इसी तरह ईसाई समुदाय तीन राज्यों (नगालैंड, मिजरोम और मेघालय) में बहुसंख्यक हैं। वहीं सिख समुदाय पंजाब में बहुसंख्यक है। PEW Research Centre के मुताबिक हिंदू आबादी देश के 28 राज्यों में ही बहुसंख्यक है। जबकि जम्मू और कश्मीर, लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी, नगालैंड, मिजरोम और मेघालय में ईसाई, एवं पंजाब में सिख समुदाय बहुसंख्यक है। रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू और कश्मीर में हिंदुओं की आबादी सिर्फ 28 फीसदी है। जबकि लक्षद्वीप और मिजोरम में सबसे कम यानि 3 फीसदी ही हिंदुओं की आबादी है। वहीं मेघालय में 12, पंजाब में 28, नागालैंड में 9 और अरूणाचल प्रदेश में 28 फीसदी आबादी ही हिंदू है।

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने दिया जवाब
वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करते हुए दावा किया है कि देश के 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वहां हिंदुओं की जगह स्थानीय बहुसंख्यक समुदायों को ही अल्पसंख्यक से जुड़ी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम 2004 की धारा 2 (F) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह केंद्र को असीम शक्ति देती है। हालांकि इस दावे पर सरकार ने अपने हलफनामें में कहा है कि याचिकाकर्ता का तर्क है कि यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, अपने संस्थानों का प्रशासन नहीं कर सकते, सही नहीं है। जो समुदाय राज्य की सीमा में अल्पसंख्यक के तौर पर चिह्नित किए गए हैं, वह अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन कर सकते हैं।

राज्य के पास अधिकार
केंद्र ने यह भी कहा कि जैसे महाराष्ट्र सरकार ने 2016 में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया था। उसी तरह राज्य, धार्मिक या भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। कर्नाटक ने भी उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अपने राज्य में अल्पसंख्यक भाषाओं का दर्जा दिया है। ऐसे में राज्य सरकारें ऐसे समुदायों के संस्थानों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकती हैं।

अभी क्या है व्यवस्था
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत, केंद्र ने 1993 में पांच समुदायों ,मुस्लिम, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया था। जो कि राष्ट्रीय स्तर के पैमाने पर आधारित है। इसी तरह टीएमए पई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 30 के प्रयोजनों के लिए, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को राज्यों के आधार पर माना जाना चाहिए। जिसके आधार पर राज्य भी अपने क्षेत्र में किसी भी समुदाय को धर्म और भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक घोषित कर सकते हैं।

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