जानिए, गन्ने के रस से कैसे तैयार होता है लाजवाब गुड़

कोटा. गुड़ का इंसान से नाता सिर्फ मिठास से ही नहीं है। इसका इंसान से एक और गहरा नाता है। मां की कोख में शिशु के निर्माण में 9 माह का समय लगता है, इतना ही समय गन्ने की पैदावार में भी लगता है। इसके बाद फसल की कटाई होकर गन्ना चरखियों तक पहुंचता है, फिर लंबी प्रक्रिया व कड़ी मेहनत के बाद गुड़ की मिठास जुबां पर आती है। खेतों में उगे गन्ने से गुड़ बनाने की प्रकिया बेहद रोचक है। आइए, जानते हैं गन्ने की पैदावार से गुड़ बनने तक की प्रक्रिया। लेकिन, इससे पहले एक बात आपके जहन में होना जरूरी है कि बूंदी जिले के जजावर कस्बे सहित आसपास के क्षेत्र में गन्ने की फसल का उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता हैं। जिसकी सोंधी महक से वातावरण खुशनुमा है।

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यूं होती है गन्ने की फसल

गन्ने की फसल रोपने में एक रोचक बात है कि इसका बीज नहीं होता। गांंठों को ही जमीन में रोपा जाता है। फरवरी माह में इसकी बुवाई की जाती है। करीब 9 माह बाद बड़ा आकार लेने के साथ फसल तैयार हो जाती है। इस फसल के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है। यही वजह है कि गन्ने की फसल सर्दियों में की जाती है।

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ऐसे बनता है गुड़

किसान बताते हैं कि गुड़ बनाने से पहले गन्ने का बड़ी-बड़ी चरखियों में रस निकाला जाता है। रस को बड़ेे कढ़ाओं में ज्यादा तापमान पर घंटों तक घोटा जाता है। फिर धीरे-धीरे यह गाढ़ा हो जाता है, फिर कुछ घंटे ठंंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद गुड़ तैयार हो जाता है। रुकिए जनाब, अभी गुड़ पूरी तरह तैयार नहीं है, इसके बाद भी बहुत कुछ करना बाकी होता है।

गुड़ तैयार होने के बाद इसे बड़े बर्तन में निकाला जाता है। इसके बाद भेलियां तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है। दरअसल बड़े-बड़े कढ़ाओं से उतारने के बाद इसे साफ सूती कपड़े में डालते है, जिनकों तराजू में पांच किलो वजन में एक आकार दिया जाता हैं। जिसे हाड़ौती में भेली कहते हैं। खास बात यह है यहां गुड़ में किसी तरह की कोई मिलावट नहीं होती। यह पूरी तरह से शुद्ध होता है।

गन्ने की प्रमुख किस्में
डिस्को, कालयो, रसगुल्ला, सकरियो सहित कई किस्म के गन्ने क्षेत्र में प्रमुखता से बोया जाता है। रसगुल्ला किस्म की डिमांड अधिक रहती है। इसकी वजह यह है कि इस किस्म के गन्ने में रस ज्यादा निकलता है और इसके गुड़ का रंग साफ रहता है।

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