किसान आंदोलनः यहां आसानी से समझिए किसानों से लेकर सरकार तक की ‘तिहरी उलझनें’
दिल्ली/कोटा. केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों के लिए हाल ही में तीन नए कानून बनाए हैं। इन तीनों कानूनों के संसद में पास होने के बाद से ही पंजाब और हरियाणा के किसान पिछले दो महीनों से सड़कों पर उग्र आंदोलन कर रहे हैं। जबकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन कानूनों को वापस लेने से साफ इन्कार कर चुके हैं। जिसके बाद किसानों और सरकार के बीच टकराव के हालात पैदा हो गए हैं।
आखिर वह कानून हैं क्या जिन्हें केंद्र सरकार कृषि जगत की सबसे बड़ी क्रांति तो किसानों की दलीलें खेती को तबाह करने वाला करार दे रही हैं। तीन चरणों में आसानी से समझते हैं इन कानूनों की बारीकियां, किसानों के डर और सरकार की पेचीदगी भरी दलीलेः-
1- कानूनः कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020
प्रावधानः इस कानून के जरिए किसानों और कारोबारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च कम करने की बात भी इस कानून में है।
किसानों का डरः न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था खत्म हो जाएगा। किसान अगर मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां खत्म हो जाएंगी। ई-नाम जैसे सरकारी पोर्टल का क्या होगा?
केंद्र सरकार की दलीलः एमएसपी पहले की तरह जारी रहेगी। मंडियां खत्म नहीं होंगी। वहां पहले की तरह ही कारोबार होता रहेगा। नई व्यवस्था से किसानों को मंडी के साथ-साथ दूसरी जगहों पर भी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा। मंडियों में ई-नाम ट्रेडिंग जारी रहेगी।
2- कानूनः कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020
प्रावधानः इस कानून में कृषि करारों (एग्रीकल्चर एग्रीमेंट) पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, प्रोसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता है। इसके साथ किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति करना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात इस कानून में है।
किसानों का डरः कॉन्ट्रैक्ट या एग्रीमेंट करने से किसानों का पक्ष कमजोर होगा। वो कीमत तय नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान कैसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करेंगे? विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को फायदा होगा।
केंद्र सरकार की दलीलः कॉन्ट्रैक्ट करना है या नहीं, इसमें किसान को पूरी आजादी रहेगी। वो अपनी इच्छा से दाम तय कर फसल बेच सकेंगे। देश में 10 हजार फार्मर्स प्रोड्यूसर ग्रुप्स (FPO) बन रहे हैं। ये FPO छोटे किसानों को जोड़कर फसल को बाजार में सही कीमत दिलाने का काम करेंगे। विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी जाने की जरूरत नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद निपटाया जाएगा।
3- कानूनः आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020
प्रावधानः इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। सरकार के मुताबिक, इससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिल सकेगी, क्योंकि बाजार में कॉम्पिटीशन बढ़ेगा।
किसानों का डरः बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेगी। इससे कालाबाजारी बढ़ सकती है।
केंद्र सरकार की दलीलः किसान की फसल खराब होने की आंशका दूर होगी। वह आलू-प्याज जैसी फसलें बेफिक्र होकर उगा सकेगा। एक सीमा से ज्यादा कीमतें बढ़ने पर सरकार के पास उस पर काबू करने की शक्तियां तो रहेंगी ही। इंस्पेक्टर राज खत्म होगा और भ्रष्टाचार भी।