कांप जाएगी आपकी रूह: नेताजी को जानना है तो पढ़िए उनकी लिखी यह चिट्ठियां

TISMedia@नेशनल डेस्क. ‘इंग्लैंड के राजा के लिए वफादारी की कसम खाना मेरे लिए मुश्किल था। जबकि मैं खुद को देश सेवा में लगाना चाहता था। मैं देश के लिए कठिनाइयां झेलने को तैयार हूं, यहां तक कि अभाव, गरीबी और मां-पिता की नाखुशी भी।‘’ यह उस चिट्ठी का हिस्सा जिसे महान देशभक्त सुभाष चंद्र बोस ने अपने बड़े भाई शरत चंद्र को लिखी थी।

आखिर ऐसा क्या हुआ जो छोटे भाई को अपने बड़े भाई के नाम इतने तल्ख लहजे में चिट्ठी लिखनी पड़ी? तो आप जानकर हैरान रह जाएंगे इसकी वजह भी एक खत ही था, जिसे शरतचंद्र ने सुभाष चंद्र बोस को लिखा था।

सिविल सेवा की नौकरी को मारी ठोकर

यह बात तो लगभग हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा जानता है कि आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए नेताजी ने भारतीय सिविल सेवा की नौकरी ठुकरा दी। उन्होंने लंदन से आईसीएस की परीक्षा पास की। हालांकि उनके इतनी बड़ी नौकरी को ठुकराने पर उनके पिता काफी नाराज़ हुए। दरअसल उनके पिताजी को सुभाष के इस फैसले की वजह ही समझ में नहीं आ रही थी।

चिट्ठी लिख बताई पिता की नाराजगी

इस बात की तस्दीक उनके बड़े भाई शरतचंद्र बोस के लिखे गए पत्र से भी होती है जिसमें उन्होंने सुभाष को पिता की नाराज़गी के बारे में बताया। लेकिन, बड़े भाई शरत चंद्र की चिट्ठी का जवाब छोटा भाई इतना तल्ख लहजे में देगा आज के दौर में कोई सोच भी नहीं सकता। सुभाष का पत्र पढ़कर शरतचंद्र भी अच्छे से समझ गए थे कि उन पर अब किसी तरह का दबाव डालना बेकार है।

अब तुम क्या करोगे?

इसके बावजूद भी शरतचंद्र का दिल नहीं माना और उन्होंने सुभाष को एक और खत लिखा। जिसमें  बताया कि पिता रात-रात भर सोते नहीं हैं। तुम्हारे भारत लौटते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वे ब्रिटिश राज के निशाने पर हैं। ऐसे में भारत सरकार उन्हें स्वतंत्र नहीं रहने देगी।’ सुभाष चंद्र बोस के मित्र दिलीप राय ने जब यह पढ़ा तो वह बोले, ‘सुभाष, अब तुम क्या करोगे? अभी भी वक्त है अगर तुम चाहो तो अपना इस्तीफा वापस ले सकते हो?

जवाब सुन दंग रह गए जिगरी दोस्त

यह सुनकर सुभाष गुस्से से तिलमिलाकर बड़े ही बेबाक अंदाज में कहा कि तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?’ दिलीप राय ने बेहद शांत स्वर में कहा, ‘इसलिए, क्योंकि तुम्हारे पिता अभी बीमार हैं। सुभाष बोले, ‘मैं जानता हूं, पर अगर हम अपने परिवार की प्रसन्नता के आधार पर अपने आदर्श निर्धारित करते हैं तो क्या ऐसे आदर्श वास्तव में आदर्श होंगे? सुभाष चंद्र बोस की यह बात सुनकर दिलीप राय दंग रह गए। उनके मुंह से सिर्फ यही निकल पाया, ‘धन्य हैं तुम्हारे माता-पिता, जिन्होंने ऐसे जुनूनी बेटे को जन्म दिया है जो पिता की खुशी से भी ऊंचा स्थान अपनी मातृभूमि की सेवा को देता है। साल 1943 में नेताजी जब बर्लिन ( Berlin ) में थे तब दिलीप राय ने वहां आज़ाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की। सुभाष चंद्र बोस ( Subhas Chandra Bose ) ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की।

जलियावाला बाग ने भरी आग

देश और दुनियाभर में फैले हिंदुस्तानियों के दिलों में आजादी की चाह जगाने वाले शख्स और महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा ( Odisha ) के कटक (Cuttack ) शहर में हुआ था। उनके पिता कटक शहर के जाने-माने वकील थे। बोस को जलियांवाला बाग कांड ( Jallianwala Bagh Massacre ) ने इतना प्रभावित किया कि वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी पर उन्होंने विरोध किया तो उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। लेकिन नेताजी बचपन से अलहदा किस्म के इंसान थे।

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