राजस्थान के 13 लाख लोग आज भी अंधेरे में काट रहे जीवन, 300 गांव में अब तक नहीं पहुंची बिजली
आजादी के 74 साल बाद भी राजस्थान की एक हजार से ज्यादा ढ़ाणियों में अब भी पसरा है अंधेरा

- देश मना रहा है आजादी का अमृत महोत्सव, अंधेरे में डूबी है 13 लाख लोगों की जिंदगी
- ऊर्जा मंत्री का दावाः खेतों में बने घरों को छोड़ दें तो शत प्रतिशत हो चुका है राजस्थान में विद्युतकरण
TISMedia@Kota देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन राजस्थान में लाखों लोगों की जिंदगी में आज भी अंधेरा पसरा हुआ है। आजादी के 74 साल बाद भी राजस्थान के करीब 300 राजस्व गांवों और एक हजार से ज्यादा ढ़ाणियों में बिजली नहीं पहुंच पाई है। उर्जा विभाग के अधिकारियों के अनुमान के मुताबिक करीब 13 लाख लोग आज भी अंधेरे में जी रहे हैं। हर घर तक बिजली पहुंचाने के केंद्र एवं राज्य सरकार के दावों के विपरीत प्रदेश के आदिवासी बहुल उदयपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के साथ ही यूपी एवं मध्य प्रदेश से सटे धौलपुर जिले के भी कई गांवों में आज भी अंधेरा है। यहां तक कि बूंदी के कोचरियां गांव में लोकसभा अध्यक्ष की तमाम कोशिशों के चलते 74 साल बाद बिजली पहुंच सकी है।
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प्रदेश की राजधानी जयपुर जिले की फागी तहसील की दो दर्जन ढ़ाणियों (मजरे) में अब तक बिजली नहीं पहुंची है, हालांकि खंभें लगे एक साल हो गया। वहीं राज्य के उर्जा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला का दावा है कि खेतों में बने घरों को छोड़ दें तो शत प्रतिशत विधुतकरण हो चुका है। उन्होंने कहा कि ढ़ाणी की कोई परिभाषा नहीं है। सरकार हर घर में बिजली पहुंचाने की कोशिश कर रही है। गांव और घर ही यूनिट है। उधर सामाजिक संगठनों के अध्ययन एवं विधुत निगम के अधिकारियों से अनौपचारिक बातचीत में सामने आया कि सरकार ने हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा तो किया, लेकिन 10 हजार से अधिक ऐसे गांव और ढ़ाणियों की गणना ही नहीं की, जिनकी आबादी 100 से 250 तक है। हालात यह है कि 300 की आबादी वाले भी कई गांव अभी भी अंधेरे में है। कई गांवों को सरकार ने विधुतिकृत तो घोषित कर दिया, लेकिन आधे से अधिक घरों को कनेक्शन नहीं मिला।
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आदिवासियों के लिए बिजली आज भी सपना
प्रदेश के आदिवासी बहुल उदयपुर, प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों के गांवों में रह रहे आदिवासियों के लिए बिजली आजादी के 72 साल बाद भी एक सपने की तरह है। यहां हालात यह है कि जिला मुख्यालयों से कुछ दूर चलने के बाद अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है। राजस्थान ही नहीं गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासियों के धार्मिक स्थल बेणेश्वर धाम से 30 किलोमीटर दूर चलने पर अंधेरा नजर आता है। बांसवाड़ा खेराडाबरा, खरेरी, डोकर, छाजा, भुकनिआ, मोर, सरनपुर, दलपुरा, टिमटिआ, शेरगढ़, अरधुना, सरेरी, दुक्वारा सहित कई गांवों के आदिवासियों ने आज तक बिजली नहीं देखी है। उदयपुर जिले के नयाखोला, मगराफला, फला, गागलिया, खेराड़ा, कातरा, जामबुआफला, छालीबोकड़ा, अबांवी, रेबाड़ी, दाडमीया, पीलक, सेरा, माल, सरवण, जैर फला, अहारी फला, निचली करेल, उपली बस्सी, निचली सिगरी, पाठीया, नया खोला, सोम कुंडाफला, ववाई फला, खल,दीवाली घाटी, ईटों का खेत, साकरिया, सिली पांच बोर, बीडाफला, छोकरवाड़ा, पापड़दा सहित करीब तीन दर्जन गांवों में अंधेरा है ।
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नेताजी हैं कि सुनते ही नहीं
प्रतापगढ़ और डूंगरपुर जिलों के आदिवासी बहुंल गांवों में भी बिजली नहीं पहुंचने की शिकायत लोग हमेशा राजनेताओं और अफसरों से करते हैं, लेकिन अब तक उनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका है। उप्र.और मप्र. से सटे धौलपुर जिले के पांच गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंची है। दौसा जिले में तीन गांव,बारां जिले के सात और चित्तोड़गढ़ के तीन गांवों के लोगों को अब तक बिजली का इंतजार है। इनके अतिरिक्त अधिकांश जिलों में एक से तीन या चार गांव अंधेरे में है। ढ़ाणियों की संख्या तो काफी अधिक है।