लोकसभाः “शून्य” साबित हुआ शून्य काल, जनता को भूले माननीयों को सताई सिर्फ “जासूसी” की चिंता
कोरोना के भयावह दौर में भी किसी सांसद ने नहीं उठाया तत्काल सार्वजनिक महत्व का एक भी मामला
- दो दिन पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित हुई लोकसभा, लोकसभा अध्यक्ष से मिले सभी दलों के मुखिया
- सरकार ने 7 विधेयक बिना चर्चा के ही करा लिए पारिए, दिवालियापन संहिता में भी हो गया संशोधन
TISMedia@Kota 17 वीं लोकसभा का छठवां सत्र सिर्फ 17 दिन ही चल सका। इस बीच विपक्ष पर सिर्फ और सिर्फ खुद की जासूसी ही तारी रही। भयावह कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच बुलाए गए संसद के इस सत्र में जनता को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। न किसी ने तीसरी लहर के दौरान सुरक्षा और बचाव के इंतजामों पर बात करना जरूरी समझा और ना ही दो साल से घरों में बंद पड़े नौनिहालों को स्कूलों तक लाने का रास्ता दिखाने की किसी ने जहमत उठाई। पूरे सत्र में माननीयों को सिर्फ और सिर्फ एक ही चिंता तारी थी कि कहीं सरकार उनकी जासूसी तो नहीं करा रही। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर माननीय ऐसा क्या करते हैं जिन्हें सार्वजनिक जीवन में भी गोपनीयता की इस कदर जरूरत आन पड़ी है।
17वीं लोकसभा का यह छठा सत्र 19 जुलाई को शुरू हुआ। इसे 13 अगस्त तक चलना था, लेकिन विपक्ष के लगातार हंगामे और बवाल के चलते लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दो दिन पहले ही यानि 11 अगस्त को इसे खत्म करने की घोषणा कर दी।
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वक्त और पैसों की बर्बादी
मानसून सत्र में जनता के वक्त और पैसे की जमकर बर्बादी हुई। 17वीं लोकसभा में अब तक आयोजित हुए सत्रों की बात करें तो पहले सत्र में 37 बैठकें हुईं। जबकि दूसरे सत्र में 20, तीसरे में 23, चौथे सत्र में 10 और पांचवें सत्र में 24 बैठकें हो सकीं। जबकि छठवें सत्र में सिर्फ 17 बैठकें ही हुईं। यानि चौथा और छठवां सत्र जनता के वक्त और पैसों की बर्बादी ही साबित हुआ। इस दौरान माननीयों ने कुल 21 घंटे और 14 मिनट ही काम किया। काम के नाम पर भी विपक्ष तो सिर्फ और सिर्फ हंगामा ही करता रहा। काम के मामले में लोकसभा का पहला सत्र सबसे बेहतर साबित हुआ। इस सत्र में 280 घंटे काम हुआ था। जबकि दूसरे सत्र में यह आंकड़ा 130.45, तीसरे सत्र में 110.15, चौथे सत्र में 60 और पांचवें सत्र में 132 घंटे ही रहा। यानि अपनी जासूसी की चिंता में डूबे माननीयों ने जनता के मुद्दों को दरकिनार कर 74 घंटे 46 मिनट का समय बर्बाद किया। पहले सत्र को छोड़ दिया जाए तो वक्त की बर्बादी अब शायद संसदीय कार्य प्रणाली का हिस्सा ही बन चुकी है। लोकसभा सचिवालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो दूसरे सत्र में माननीयों ने छह घंटे 39 मिनट समय बर्बाद किया। वहीं, तीसरे सत्र में 30 घंटे तीन मिनट और चौथे सत्र में तीन घंटे 51 मिनट की बर्बादी हुई।
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शून्य काल में पसरा शून्य
17वीं लोकसभा के छठे सत्र में शून्य काल के दौरान “शून्य” ही पसरा रहा। देश ही नहीं करोड़ों लोग रोजी-रोटी से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के लिए बेकल हैं, लेकिन माननीयों ने इस दौरान “तत्काल सार्वजनिक महत्व” का एक भी मामला नहीं उठाया। जबकि, लोकसभा सचिवालय के आंकड़ों के मुताबिक 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में शून्य काल के दौरान तत्काल सार्वजनिक महत्व के कुल 1066 मामले उठाए गए थे। दूसरे सत्र में 934, तीसरे में 436, चौथे में 370 और पांचवें सत्र में 583 मामले उठाए गए थे।
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नियम 193 के तहत एक भी चर्चा नहीं हुई
मंत्रियों की ओर से कुल 52 बयान दिए गए। इसके अलावा इस सत्र में संसदीय समितियों की ओर से कुल 60 रिपोर्ट पेश की गईं। 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में एक भी रिपोर्ट नहीं पेश की गई थी। दूसरे सत्र में यह संख्या 48, तीसरे सत्र में 58, चौथे सत्र में दो और पांचवें सत्र में 171 रही थी। लोकसभा के छठे सत्र में 320 चिह्नित प्रश्न स्वीकार किए गए। इनमें से 66 सवालों का मौखिक रूप से उत्तर दिया गया। वहीं, स्वीकार किए गए गैर चिह्नित सवालों की संख्या 3680 रही। चिह्नित प्रश्नों की बात करें तो पहले सत्र में 500 सवाल स्वीकार गए थे और 183 का मौखिक उत्तर दिया गया था। दूसरे सत्र में यह आंकड़ा 380 और 140 का रहा था। तीसरे सत्र में यह संख्या 420 और 98, पांचवें सत्र में 440 और 84 रही थी। चौथे सत्र में दोनों आंकड़े शून्य रहे थे।
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नियम 317 के तहत उठाए 331 मामले
नियम 317 के तहत कुल 331 मामले उठाए गए। 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में नियम 317 के तहत सबसे ज्यादा 488 मामले उठाए गए थे। दूसरे सत्र में यह संख्या 364, तीसरे सत्र में 399, चौथे सत्र में 183 और पांचवें सत्र में 405 रही थी। बता दें कि नियम 377 में प्रावधान है कि यदि कोई सदस्य सदन के ध्यान में कोई ऐसा मामला लाना चाहता है जो व्यवस्था का विषय न हो, तो इसके लिए उसे सचिव को लिखित नोटिस देना होता है। इसमें मामले का स्पष्ट और सटीक रूप से उल्लेख होना चाहिए। सदस्य को इसे उठाने की अनुमति तभी दी जा सकती है जब अध्यक्ष ने सहमति दे दी हो। इसका समय और तारीख अध्यक्ष तय करता है।
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बिना चर्चा के पास हो गए 7 विधेयक
मानसून सत्र में सरकार ने लोकसभा में कुल 13 विधेयक पेश किए और 20 विधेयक पारित हुए। यानी कि सात विधेयक बिना चर्चा के ही पारिए कर दिए गए। 17वीं लोकसभा के बाकी सत्रों की बात करें तो पहले सत्र में 33 विधेयक पेश हुए थे और 35 पारित हुए थे। दूसरे में 18 पेश हुए थे और 14 पारित हुए थे। तीसरे सत्र में 18 पेश हुए थे और 15 पारित हुए थे। चौथे सत्र में 16 विधेयक पेश हुए थे और 25 पारित हुए थे। पांचवें में 17 पेश हुए थे और 18 विधेयक पारित हुए थे।
छठे सत्र में पेश किए गए ये 13 विधेयक
तारीख – पेश किए गए विधेयक
22 जुलाई – अंतरदेशीय पोत विधेयक, 2021
22 जुलाई – आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021
26 जुलाई – दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021
28 जुलाई – विनियोग (नंबर 4) विधेयक, 2021
28 जुलाई – विनियोग (नंबर 3) विधेयक, 2021
30 जुलाई – एनसीआर और आसपास के क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक, 2021
30 जुलाई – सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021
02 अगस्त – न्यायाधिकरण सुधार विधेयक, 2021
05 अगस्त – केंद्रीय विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2021
05 अगस्त – कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021
09 अगस्त – राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग (संशोधन) विधेयक, 2021
09 अगस्त – भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए राष्ट्रीय आयोग (संशोधन) विधेयक, 2021
09 अगस्त – संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021