Diwali special : रियासतकाल में पूरी दुनिया थी कोटा की दिवाली की कायल, पढ़िए खास खबर…

कोटा. रियासत काल ( Princely Period ) के दौरान कोटा (Kota) में दीपावली ( Deepavali festival ) का जश्न बेहद खास होता था। जिसकी कायल सिर्फ राजपूताना रियासतें ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया था। राजस्थान की रियासतों  के राजा, मनसबदार और ठिकानेदारों को तो इस पल का बेसब्री से इंतजार रहता था। क्योंकि इस रोज कोटा के शासक उन पर तोहफों की बौछार करते थे।

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पांच दिन चलता था जश्न 

कोटा रियासत में दीपावली का जश्न पांच दिनों तक चलता था। त्योहार की शुरुआत तोपों की सलामी से होती थी। पूरे गढ़ पैलेस ( kota garh palace) को दीपकों से सजाया जाता था। इस दौरान होने वाली आतिशबाजी ( Fireworks ) को दुनिया भर में मशहूर थी। आलम यह था कि दीपावली की रौनक का राजस्थान ही नहीं, पूरी दुनिया कायल थी।

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लाल छतरी का दरीखाना 

इतिहासकार प्रो. जगत नारायण बताते हैं कि कोटा में दिवाली शानो-शौकत के साथ मनाया जाता था। दिवाली के दिन शाम 6 बजे लोग बड़ी संख्या में दरीखाने पहुंच जाते। इस बीच 6.30 बजे महाराव के दरीखाने में आने के साथ ही दीपोत्सव का जश्न शुरू हो जाता। प्रो. नारायण के अनुसार कोटा दरबार में सजने वाले दरीखाने को बृजनाथ जी की लाल छतरी का दरीखाना कहा जाता था। कोटा के महाराव पर्व की शुरुआत बृजनाथ जी के मंदिर में दीपदान करके करते थे। इसके बाद लक्ष्मी पूजन होता था। इसके बाद महाराव हथियां पोल की बिछायत पर बाहर जाकर दर्शन करते थे।भगवान बृजनाथ जी लाल छत्री के रूप में कोटा दरबार में पधाकर सिंहासन पर विराजते थे और कोटा के महाराव हथियां पोल की बिछायत पर बाहर जाकर दर्शन करते थे। दर्शन के बाद महाराव सरदारों को चौबदारों की छड़ियां देते थे। दर्शन खुलने के बाद ठाकुर जी को सलामी दी जाती थी।

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देखते ही बनती थी रौनक 

कोटा रियासत में होने वाले दिवाली के जश्न की राजस्थान की बाकी रियासतें ही नहीं पूरी दुनिया कायल थी। बृजनाथ जी के दर्शन और सलामी के बाद इस जश्न की शुरुआत होती। अखाड़े में जेठी कुश्ती लड़ते। नक्कार खाना और शाही बैंड़ जश्न की धुनें बजाता रहता। दरबार के रास्ते में सरदार मुरतबी निशान लिए खड़े रहते। भगतणियां बधाइयां गातीं। चौक में घोड़े और हाथी हाजिर हो जाते। इसके बाद मीठे तेल और घी के दीपक चौक और छतरी पर जगह-जगह सजाई जाती।

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तोपों की दी जाती थी सलामी 

साजो-सजावट के बाद आतिशबाजी का दौर शुरू होता। जिससे पूरे कोटा का आसमान नहा उठता। इसके बाद ठाकुर जी की आरती होती और फिर उन्हें दो तोपों से 3-3 फायर करके सलामी दी जाती। इसके बाद महाराज कुमार की हीड़ें निकलती थीं। मंदिर की ड्योढ़ी के बाहर आते ही सभी को हीड़ें बख्शी जातीं। ठाकुर जी के दर्शन का कार्यक्रम खत्म होने के बाद महाराज कुमार हीड़ें लेकर महारानी के यहां पधारते। फिर याद घर जाते। इतना ही नहीं, पूरी रात आतिशबाजी होती रहती। जिसे देखने दूर दूर से लोग आते।

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