नहीं रहे भाजपा के कल्याण: राम लहर से कराया था बीजेपी का देश भर में “कल्याण”
35 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने, वाजपेयी के कहने पर एक झटके में छोड़ दी थी पार्टी

- 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ तो कल्याण सिंह सिंह बने थे यूपी के महामंत्री
- कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने जून 1991 में बनाई थी पहली पूर्ण बहुमत की भाजपाई सरकार
TISMedia@Lucknow उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे भारत के प्रमुख राजनेता कल्याण सिंह का 89 साल की उम्र में शनिवार को लखनऊ के पीजीआई में निधन हो गया। दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह 35 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। इसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे पलट कर नहीं देखा। कल्याण सिंह के साथ ही हिंदुस्तान की सियासत के एक युग का अंत हो गया।
संघ से राजनीति में पदार्पण
अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गाँव में 05 जनवरी 1935 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे। पढ़ाई करने के लिए अलीगढ़ आ गए। जहां धर्म समाज महाविद्यालय से उन्होंने 1954 में बी.ए किया और फिर 1956 में एलएलबी की, लेकिन वकालत करने के बजाय वह शिक्षक बन गए। स्कूली बच्चों को पढ़ाने के साथ ही कल्याण सिंह ने अपना राजनीतिक सफर जारी रखा। उनकी क्षेत्र में सक्रियता और मजबूत पकड़ के चलते साल 1967 में पहली बार जनसंघ ने अतरौली विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। जनसंघ का यह दांव इतना सटीक बैठा कि साल 1980 तक कोई भी कल्याण सिंह को हरा नहीं पाया। जनसंघ का जब जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में सरकार बनी तो कल्याण सिंह को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया, लेकिन साल 1980 के चुनाव आते-आते जनता पार्टी के खिलाफ यूपी में खासा माहौल बन गया। इंदिरा गांधी खुद मोर्चा संभाले हुईं थी और उन्होंने अलीगढ़ ही नहीं आसपास के इलाकों में कई जनसभाएं की। नतीजन, साल 1980 के चुनावों में कल्याण सिंह को पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा।
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राम लहर के कराया बीजेपी का कल्याण
साल 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ तो कल्याण सिंह को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बनाया गया। इसके साथ ही राम मंदिर आंदोलन की कमान भी उन्हें ही सौंप दी गई। मंदिर निर्माण के लिए कल्याण सिंह ने गांव-गांव यात्राएं की, गिरफ्तारियां दी। नतीजन, भाजपा कार्यकर्ताओं में उनकी इमेज रामभक्त की बन गई। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा का ऐसा दौर शुरू किया कि पूरे उत्तर प्रदेश में राम मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव में आंदोलन होने लगे। पहली बार 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवा दी। जिसमें 5 लोगों की मौत हुई थी। इस घटना के बाद तो कल्याण सिंह ने मुलायम सिंह के खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि अयोध्या से लेकर उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश का माहौल ही बुरी तरह गर्म हो गया। कल्याण सिंह की इसी मंदिर लहर ने भाजपा को सियासी संजीवनी दी और उन्होंने सिर्फ एक साल में बीजेपी को इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया कि पार्टी ने साल 1991 में भाजपा ने पहली बार उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। जिसके मुखिया यानि मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह।
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मंदिर यहीं बनाऊंगा, जेल भी गए, सरकार भी गिरी
राजनीति के भगवाकरण से सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे कल्याण सिंह लोगों की नब्ज पढ़ना बखूबी जानते थे। यही वजह रही कि मुख्यमंत्री बनने के बाद कल्याण सिंह ने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ सबसे पहले अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर का निर्माण करने की शपथ ली। इसके बाद 6 दिसंबर 1992 की कार सेवा को कोई भला कैसे भूल सकता है। इसी दिन कार सेवकों की अनियंत्रित भीड़ ने बाबरी ढांचे का विध्वंस कर डाला था। केंद्र ने सवाल किया तो पूरी घटना का दोष अपने ऊपर लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। बाबरी मस्जिद गिरने के बाद कल्याण सिंह हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर उभरे। मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चलाने से इनकार करने वाले कल्याण सिंह को इस मामले में अदालत ने तिहाड़ जेल भी भेज दिया था।
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दोबारा सत्ता में आने के लिए करना पड़ा कड़ा संघर्ष
बाबरी मस्जिद विध्वंस और मंडल-कमंडल के इस दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म और जातिवाद का ऐसा उभार आया कि इससे देश का यह सबसे बड़ा सूबा शायद ही कभी उबर सके। बाबरी मस्जिद गिरने के बाद साल 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कल्याण सिंह अलीगढ़ की अतरौली और एटा की कासगंज सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से उन्होंने जीत हासिल की। इन चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन मायावती और मुलायम सिंह के गठजोड़ ने कल्याण सिंह की सत्ता में वापसी नहीं होने दी। बीजेपी को सत्ता में वापस आने के लिए 5 साल तक संघर्ष करना पड़ा। साल 1997 में कल्याण सिंह दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन इस बार उनकी पार्टी के आला पदाधिकारियों से ही कलह हो गई। नतीजन, दो साल बाद ही पार्टी ने भाजपा को यूपी में स्थापित करने वाले कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर “कठपुतली” सीएम यानि राम प्रकाश गुप्ता को सूबे का नया मुख्यमंत्री बना डाला। नाराज कल्याण सिंह ने भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के नाम से नए राजनीतिक दल का गठन कर लिया।
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पुराने दुश्मन, बन बैठे दोस्त
दिसम्बर 1999 में कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी। हालांकि कुछ दिन नाराज रहने के बाद जनवरी 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मनाने पर उनकी फिर से घर वापसी हुई और दो साल पहले बनाई अपनी पार्टी राष्ट्रीय क्रांति पार्टी का भी भाजपा में विलय कर लिया। इस साल हुए देश के आम चुनावों में उन्होंने बुलन्दशहर लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में न सिर्फ चुनाव लड़ा, बल्कि शानदार जीत भी दर्ज कराई। साल 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा, लेकिन भाजपा को इसमें कोई बडी सफलता नहीं मिल सकी। जिसके बाद उनकी “घर वापसी” ज्यादा दिनों तक न टिक सकी और साल 2009 में एक बार फिर उन्होंने भाजपा छोड़ दी। यह साल उत्तर प्रदेश की सियासत में खासा अहम था, क्योंकि सियासत के दो विपरीत छोर एक जगह आ मिले और यह छोर थे मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह। “नेताजी” और “बाबूजी” का यह साथ दोनों के सियासी फायदे के लिए सालों तक जली यूपी की आवाम को रत्ती भर रास न आया। भाया। इस चुनाव में एटा लोकसभा से निर्दलीय मैदान में उतरे कल्याण सिंह ने तो चुनाव जीतकर अपनी सियासी नैया पार लगा ली, लेकिन उनका समर्थन करने वाले मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा। आलम यह था कि इस चुनाव में समाजवादी पार्टी का एक भी मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका। कल्याण को लेकर सपा में कलह मची तो मुलायम ने उनसे दूरी बना ली। यह नुकसान इतना बड़ा था कि एटा लोकसभा सीट कल्याण सिंह के बाद उनके बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजू ने हमेशा के लिए मुलायम सिंह से हथिया ली।
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आखिर तक चलता रहा रूठना मनाना
इसके बाद तो कल्याण सिंह और भाजपा का रूठना मनाना आखिर तक चलता ही रहा। साल 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले कल्याण सिंह ने एक बार फिर पार्टी बना ली। हालांकि उनकी पार्टी यानि राष्ट्रीय जनक्रान्ति पार्टी इस विधानसभा चुनाव में कुछ भी खास नहीं कर सकी। नतीजन, साल 2013 में एक बार फिर कल्याण सिंह “घर” वापस लौट आए। साल 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कल्याण सिंह को यूपी की सियासत के बाहर का रास्ता दिखाने की ठान ली और सितंबर 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बना जयपुर भेज दिया। कल्याण सिंह को जनवरी 2015 से अगस्त 2015 तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया। हालांकि राज्यपाल का कार्यकाल खत्म होने के बाद वह फिर यूपी जा पहुंचे और भाजपा की सदस्या भी ले ली, लेकिन इस बार उनकी सेहत ने उनका साथ न दिया। लगातार बीमार रहने के बाद 21 अगस्त 2021 को उन्होंने लखनऊ के अस्पताल में आखिरी सांस ली।
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