किसने ली थी मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने के लिए 6 करोड़ रुपए की सुपारी

मुख्यमंत्री की जान बचाने के लिए हुआ था उत्तर प्रदेश में एसटीएफ का गठन

  • 22 सितंबर 1998 को एसटीएफ के तत्कालीन प्रभारी अरुण कुमार ने किया था शुक्ला का एनकाउंटर 
  • श्रीप्रकाश शुक्ला बिहार के मंत्री और यूपी के बाहुबली विधायकों को उतार चुका था मौत के घाट

TISMedia@Lucknow उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह का 90 के दशक में यूपी की सियासत में ऐसा खौफ था कि उन्हें मारने के लिए यूपी के राजनेताओं ने सुपारी तक दे डाली थी। लेकिन, यही सुपारी बिहार के मंत्री और यूपी के बाहुबली विधायक को मौत के घाट उतारने वाले कुख्यात माफिया की मौत का सबब बन गई। इतना ही नहीं, सीएम की हत्या की सुपारी ही वह वजह थी, जिसके चलते उत्तर प्रदेश में पुलिस ने पहली बार एनकाउंटर स्पेशलिस्ट यूनिट यानि स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया था।

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यूपी की सियासत में 90 का दशक तमाम बड़े बदलाव लेकर आया। मंडल कमंडल की राजनीति ने जहां जातिवादी सियासत की नींव रखी, वहीं कल्याण सिंह ने इसी जातिवाद से धर्म की सियासत को धार दी। इसके साथ ही कुशासन, भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ कल्याण सिंह जमकर मोर्चा ले रहे थे। आलम यह था कि किसी को कल्याण सिंह का तोड़ तक सुझाई नही दे रहा था। नतीजन, उत्तर प्रदेश के राजनेताओं ने कल्याण सिंह की हत्या की योजना बना डाली और इस काम को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी कुख्यात माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला को।

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एसटीएफ और सर्विलांस का हुआ जन्म 
साल था 1997… खबर सामने आई कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के सीएम कल्याण सिंह की सुपारी ले ली है। दरअसल, हुआ यूं कि फरुखाबाद के सांसद साक्षी महाराज ने दावा किया कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने 6 करोड़ रुपए में  कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली है। साक्षी महाराज के इस दावे न सिर्फ पुलिस के पसीने छुड़ा दिए बल्कि, उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में हड़कंप मचा दिया। बात सिर्फ सीएम की सुरक्षा तक ही नहीं सिमटी थी बल्कि, पुलिस के रसूख पर भी सवाल उठने लगे थे। नतीजन, क्या पुलिस और क्या प्रशासन उत्तर प्रदेश की पूरी सरकारी मशीनरी कल्याण सिंह को बचाने और श्रीप्रकाश शुक्ला को दबोचने में जुट गई। इस काम के लिए  तत्कालीन एडीजी अजय राज शर्मा ने यूपी पुलिस के  बेहतरीन 50 जवानों को चुनकर 4 मई 1998 को पहली बार स्पेशल टास्क फोर्स यानि STF का गठन किया। उस वक्त इस फोर्स का एक मात्र उद्देश्य था श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना। एसटीएफ का गठन तो हो गया, लेकिन मोबाइल के नए-नए चलन ने यूपी पुलिस के छक्के छुड़ा दिए। इसका तोड़ एडीजी शर्मा ने लखनऊ यूनिवर्सिटी के कुछ शिक्षकों और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई कर यूपी पुलिस में आए अफसरों के साथ मिलकर देश की पहली मोबाइल सर्विलांस यूनिट खड़ी कर डाली।

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एसटीएफ ने मार गिराया शुक्ला 
22 सितंबर 1998 के दिन मोबाइल सर्विलांस यूनिट ने एसटीएफ प्रभारी अरुण कुमार को सूचना दी कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। शुक्ला की लोकेशन ट्रेस कर रही इस टीम की सूचना इतनी सटीक थी कि जैसे उसकी कार इंदिरापुरम इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ ने उसे घेर लिया। एसटीएफ ने श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं माना और देखते ही देखते दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। फायरिंग शुरू होते ही एसटीएफ के जांबाजों ने चारों ओर से श्रीप्रकाश शुक्ला पर जवाबी हमला बोल दिया। ताबड़तोड़ गोलियां चलीं तो सीएम की सुपारी लेने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला को अपनी ही जान से हाथ धोना पड़ा।उन दिनों शुक्ला का यूपी में ऐसा खौफ था कि उसके मरने की खबर खुद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विधानसभा में दी थी।

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खौफ का दूसरा नाम था श्रीप्रकाश शुक्ला 
श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के बड़हलगंज के ममखोर गांव में हुआ था। वह शहर के दाउदपुर मोहल्ले में रहता था। तीन भाइयों में सबसे छोटा श्रीप्रकाश बचपन से ही मनमौजी था, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उसका खौफ यूपी ही नहीं बिहार सहित देश के कई राज्यों में फैलने लगा। यूपी और बिहार में आतंक का पर्याय बन चुके कुख्यात माफिया सरगना श्री प्रकाश शुक्ला से अपराधी ही नहीं, पुलिस भी खौफ खाती थी। शुक्ला का खौफ तब और ज्यादा बढ़ गया जब साल 1997 में शेरे पूर्वांचल के नाम से मशहूर बाहुबली विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही को उसने लखनऊ में दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया था। महाराजगंज के लक्ष्मीपुर के विधायक वीरेंद्र शाही की उन दिनों यूपी की सियासत में तूती बोलती थी। शाही की हत्या के बाद शुक्ला के नाम का सिक्का चलने लगा।

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बिहारी हत्याकांड से दहला बिहार 
श्रीप्रकाश शुक्ला का खौफ दिनों दिन ऐसा बढ़ा कि उसने छोटे-मोटे अपराध छोड़ सियासी दुश्मनों का शिकार करना शुरू कर दिया। शाही की हत्या के बाद शुक्ला ने बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या की सुपारी ली। खौफ के मारे बिहारी प्रसाद भारी भरकम सुरक्षा बंदोबस्तों के साथ अस्पताल में भर्ती हो गए। बावजूद इसके श्रीप्रकाश ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहारी प्रसाद के सुरक्षाकर्मियों के सामने ही उन्हें गोलियों से भून डाला। मंत्री की हत्या से पूरा बिहार दहल उठा। इस हत्या कांड में सामने आया कि बृज बिहारी प्रसाद पर विधायक देवेंद्र नाथ दुबे की हत्या करने का आरोप था। विधायक देवेंद्र नाथ दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ल बहुत अच्छे मित्र थे। इसीलिए शुक्ला दोस्त की हत्या का बदला लेना चाहता था। बड़ी बात यह थी कि इस हत्याकांड में शुक्ला ने एके 47 का इस्तेमाल किया था। जिससे पुलिस उसके अंडरवर्ल्ड से कनेक्शन जोड़ने लगी। बिहारी प्रसाद की हत्या के बाद श्रीप्रकाश ने कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी की हत्या की सुपारी ले ली, लेकिन श्रीप्रकाश के हमले के बावजूद वह बचने में कामयाब हो गए। उसने चौथी सियासी सुपारी कल्याण सिंह की ली थी, लेकिन कल्याण सिंह के राज में उन्हें मारना नामुमकिन था और यह कल्याण सिंह ने साबित भी कर दिखाया। बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के थोड़े ही समय के बाद शुक्ल ने अजीत सरकार की कथित रूप से हत्या कर दी जो पूर्णियां के विधायक थे।

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खौफ से दहला पूर्वांचल 
शुक्ला का अंडरवर्ल्ड के माफियाओं और बिहार के राजनेताओं से ऐसा कनेक्शन सेट हुआ कि वह अपहरण के धंधे में भी उतर आया। 26 मई 1998 को शुक्ला ने लखनऊ के बॉटनीकल गार्डन से एक बड़े व्यापारी के बेटे कुनाल रस्तोगी का अपहरण कर लिया। बच्चे के पिता ने जब बचाने की कोशिश की तो शुक्ला ने उसकी वहीं सरेआम हत्या कर डाली। सूत्रों का कहना है कि बच्चे को छोड़ने के लिए शुक्ला ने पांच करोड़ की फिरौती वसूली थी। पहलवानी के शौकीन शुक्ला ने साल 1993 में पहली बार राकेश तिवारी नाम के शख्स की हत्या की थी। जिससे डरकर वह बैंकाक भाग गया था। लेकिन, जब वह बैंकाक से लौटकर भारत आया तो जरायम की दुनिया में उसने बड़ी धाक से साथ वापसी की। उसकी धमक ऐसी थी कि लौटते ही बिहार के कुख्यात बाहुबली सूरजभान की गैंग में शामिल होकर राजनीति में भी सक्रिय हो गया। उसके सियासी सपने इतने ज्यादा बढ़ चुके थे कि चिल्लापुर विधानसभा से चुनाव लड़ने की तैयारी करने लगा था। साही की हत्या के बाद आशंका जताई जाने लगी कि कहीं शुक्ला हरिशंकर तिवारी की भी हत्या न कर दे।

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वो कौन थी! 
शुक्ला के एनकाउंटर पर यूपी एसटीएफ को एक करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा करना पड़ा था। शुक्ला को पकड़ने के लिए सिर्फ पटना, दिल्ली और लखनऊ के बीच ही यूपी पुलिस ने एक लाख किलोमीटर की हवाई यात्रा कर डाली थी। लेकिन, किसी को अंदाजा तक नहीं था कि शुक्ला की “महिला मित्र” उसकी मौत का सबब बन जाएगी। दरअसल हुआ यूं कि श्रीप्रकाश दिल्ली के बसंतकुंज इलाके में छिपा था। वह सूरज भान से हथियारों की डील करने रांची जाने की कोशिश में जुटा था, लेकिन पालम एयरपोर्ट से फ्लाइट पकड़ने से पहले गाजियाबाद में रहने वाली उसकी महिला मित्र ने उसे मिलने के लिए बुला लिया और इस मुलाकात की खबर यूपी एसटीएफ को लग गई। बस फिर क्या था, श्रीप्रकाश शुक्ला उससे मिलने से पहले ही ढ़ेर हो गया। जरायम की दुनिया में श्रीप्रकाश शुक्ला ऐसा पहला गैंगस्टर था, जिसने मोबाइल को न सिर्फ नेटवर्किंग का हथियार बनाया, बल्कि उसे पता था कि यह मोबाइल उसे एक दिन पकड़वा भी सकता है। इसलिए हर सप्ताह वह सिम और हैंड सेट तक बदल देता था। बावजूद इसके मोबाइल ही उसके खात्मे की वजह बना।

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शुक्ला की डायरी और कल्याण सिंह की मुसीबत 
शुक्ला के एनकाउंटर के बाद एसटीएफ ने एक फोन और एक डायरी बरामद की। इस डायरी ने राजनीति के तमाम घिनौने चेहरों को बेनकाब कर दिया था, लेकिन राजनीतिक दवाबों के चलते यह डायरी पुलिस के दफ्तरों में न जाने कहां गायब हो गई। दरअसल, शुक्ला के एनकाउंटर के बाद यूपी के सियासी गलियारों में खासा हड़कंप मचा था। वह थी वह डायरी और फोन। सूत्रों की मानें तो एसटीएफ की जांच में खुलासा हुआ कि शुक्ला के तार यूपी सरकार के मंत्रियों तक से जुड़े थे। न सिर्फ राजनेता, बल्कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी उसका अच्छा दोस्ताना था और इन लोगों ने शुक्ला को बचाने की तमाम कोशिशें भी कीं। हालांकि यह कोशिशें कोई अहसान या दोस्ती का कर्ज चुकाने के लिए नहीं की गई थी, क्योंकि इसकी एवज में इन लोगों ने शुक्ला से मोटी रकम हासिल की थी। शुक्ला के एनकाउंटर के बाद एसटीएफ के सदस्य प्रीतम सिंह की हत्या के बाद यह मामला और ज्यादा गहरा गया। क्योंकि प्रीतम की हत्या शुक्ला के गिरोह ने ही की थी। जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की मुसीबतें भी खासी बढ़ गई थीँ।

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