छपास का ये कैसा रोगः बाल कल्याण समिति ने निर्दोष पिता को बना दिया बेटी का “रेपिस्ट” नर्क हुई जिंदगी

जांच में झूठा निकला पिता पर लगा 11 साल की बेटी के दुष्कर्म का आरोप, समिति ने माफी मांग झाड़ा पल्ला

  • वाहवाही लूटने के लिए निर्दोष पिता के खिलाफ दर्ज करा दिया था पॉक्सो एक्ट में मुकदमा, अखबारों में भी छपवा दी खबर
  • मेडिकल जांच में नहीं हुई दुष्कर्म की पुष्टि, अध्यक्ष ने सदस्यों के सिर फोटा ठीकरा, बोलीं जल्दबाजी में जारी किया प्रेसनोट

TISMedia@Kota सियासी रसूखों के सहारे बच्चों के कल्याण का जिम्मा तो हासिल कर लिया, लेकिन कोटा की बाल कल्याण समिति के सदस्यों को “छपास” का ऐसा रोग लगा कि न सिर्फ एक पिता बल्कि मासूम बच्ची और उसके पूरे परिवार की जिंदगी को नर्क बना डाला। 11 साल की बच्ची सड़क पर घूमते क्या मिली, बाल कल्याण समिति के सदस्यों ने कोई जांच किए बिना ही उसके पिता को “बेटी का रेपिस्ट” घोषित कर डाला। मंगलवार को जब मामले का खुलासा हुआ तो बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष माफी मांगती दिखीं। हालांकि, तब तक न सिर्फ एक पिता बल्कि उसके पूरे परिवार की जिंदगी नर्क हो चुकी थी। 

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16 अगस्त को दोपहर 12 बजे नेहरू पार्क के पास करीब 11 साल की एक बच्ची बैठी हुई थी। जिला बाल संरक्षण इकाई (डीसीपीयू) के आउटरीच वर्कर संजय मेहरा ने इसकी जानकारी चाइल्ड लाइन को दी। चाइल्ड लाइन की टीम ने भी बालिका को रेस्क्यू कर बाल कल्याण समिति के सामने पेश कर दिया। समिति ने उसे बालिका गृह में शेल्टर कराया।

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ये कैसी काउंसलिंग 
बच्ची को बालिका गृह लाने के बाद बाल कल्याण समिति के किसी सदस्य ने उसके बात तक करने की जरूरत नहीं समझी। अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ बालिका गृह की एक ठेका कर्मचारी को उससे बात करने के लिए लगा दिया। ठेका एजेंसी के जरिए बालिका गृह में लिपिकीय काम करने के लिए लगाई गई इस ठेका कर्मी आरती जोशी ने बाल कल्याण समिति के कहने पर बच्ची की कथित काउंसलिंग तक कर डाली। समिति के मुताबिक आरती जोशी के बताया कि बच्ची काफी डरी सहमी थी। उसने बताया कि उसके पिता उससे न सिर्फ मारपीट करते हैं बल्कि “गलत” काम भी करते हैं। एक ठेका कर्मचारी की बातें सुन बाल कल्याण समिति के सदस्य और पदाधिकारी इस कदर जोश में आ गए कि उन्होंने बच्ची के पिता के खिलाफ पोक्सो एक्ट में मामला तक दर्ज करवा दिया। समिति के रिपोर्ट दर्ज करवाते ही पुलिस ने बच्ची के परिजनों और पड़ोसियों तक से पूछताछ कर डाली।

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छपास के रोग ने निर्दोष पिता को बना दिया रेपिस्ट 
बाल कल्याण समिति के सदस्यों को अखबारों में सुर्खियां बटोरने और नाम छपवाने की इतनी जल्दी थी कि उन्होंने मामले की अपने स्तर पर जांच तक करना जरूरी नहीं समझा। ना ही बच्ची का मेडिकल करवाया और ना ही उसकी अधिकारिक काउंसलिंग की गई। उल्टा, नियमों की धज्जियां उड़ा समिति के सदस्यों ने रातों रात मीडिया संस्थानों के लिए “दुष्कर्मी पिता के चंगुल से छुड़ाई मासूम बेटी” जैसी मसालेदार खबर बनाकर उसका प्रेस नोट तक जारी कर दिया। जिसे कई मीडिया संस्थानों ने हूबहू प्रकाशित भी कर दिया।

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मेडिकल हुआ तो खुली पोल 
एक पिता और पूरे परिवार की इज्जत की धज्जियां उड़ाने के बाद कोटा की बाल कल्याण समिति को बच्ची का स्वास्थ्य परीक्षण कराने की सुध आई। समिति के कर्मचारी जब बच्ची को चिकित्सकों के पास लेकर गए तो मेडिकल जांच रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई। बच्ची की नाभि के ऊपर बने जिस घाव को उसके पिता के शोषण का सबूत बताया जा रहा था, वह भी मेडिकल जांच में  जन्मजात बीमारी निकला। मंगलवार को मेडिकल रिपोर्ट व सोनोग्राफी जांच आने के बाद बाल कल्याण समिति के पदाधिकारियों के होश उड़ गए।

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पहले पिता की जिंदगी नर्क बनाई फिर मांगी माफी
जांच रिपोर्ट आने के बाद खुद को फंसता देख बाल कल्याण समिति के सदस्य एक दूसरे के बचाव में उतर आए। अपनी गलतियां छिपाने के लिए न सिर्फ ठेका कर्मियों पर ठीकरा फोड़ डाला, बल्कि पीड़िता की जिंदगी से एक और खिलवाड़ करते हुए उसे मानसिक विमंदित तक बता डाला। इतने पर भी मामला न संभला तो खुद बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष कनीज़ फातिमा मैदान में उतरीं और पूरी घटना पर खेद जताते हुए माफी मांगने लगीं। कनीज़ फातिमा ने पूरी घटना पर सफाई देते हुए कहा कि समिति सदस्यों को पीड़िता की अधिकारिक काउंसलिंग कराने और मेडिकल रिपोर्ट देखे बिना प्रेसनोट जारी नहीं करना चाहिए था। बालिका के साथ कोई दुष्कर्म नहीं हुआ है। बालिका के पिता सरकारी कर्मचारी है। इससे परिवार की सामाजिक छवि खराब हुई है।

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जिम्मेदारियों से झाड़ा पल्ला जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश 
कोटा की बाल कल्याण समिति अब न सिर्फ जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है बल्कि जिम्मेदारों को भी बचाने की कोशिश में जुटी है। नतीजन, बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष कनीज़ फातिमा इसके लिए अब बच्ची को ही मानसिक विमंदित करार दे अपने साथ-साथ सभी जिम्मेदारों को बचाने की कोशिश में जुट गई हैं। उन्होंने समिति के सदस्यों का बचाव करते हुए कहा कि समिति के चारों सदस्यों में से किसी ने बालिका से काउंसलिंग नहीं की इसलिए यह गड़बड़ी हुई। समिति की बैठक के बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को जांच के लिए पत्र भेजा था। जांच में सामने आया कि बालिका के दो बड़े भाई नहीं है। 2 छोटे भाई है। जबकि उसने दो शादीशुदा भाइयों को जयपुर में रहना बताया था। बालिका अपना घर भी नहीं पहचान रही थी। बालिका 1 रात व 1 दिन घर से गायब रही। बालिका मानसिक विमंदित है।

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