जब सुरज हुआ बूढ़ा तो जमीन छट-पटा उठी

अजय सिंह

अजय सिंह

भारतीय जनसंचार संस्थान से अध्ययन करने के बाद सामाजिक व्यवहार एवं जनसंचार विषय पर निरंतर शोध में जुटे हैं।

पिछले दो महीने से इस विषय पर लिखने की सोच रहा हूं। लेकिन लिखने में डर लग रहा था। कई बार लिखने को सोचा। हर बार बहुत दूर तक सोचकर रुक गया।

दरअसल, जो बातें मैं कहने जा रहा हूं, उनका मेरे पास कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। होगा भी कैसे, अभी तक विज्ञान ने इस विषय पर बहुत शोध ही नहीं किया है। स्टीफ़न हाकिंग जैसों ने भी इसपर कुछ नहीं कहा। मैंने बहुत खोजा, मिला नहीं। इस विषय पर उनका ध्यान ही नहीं गया। हो सकता है, समय न मिला हो। मनुष्य की आयु होती ही कितने साल है।

लेकिन अब वैश्विक परिस्थिति और त्राहिमाम देखते हुए शायद इसे व्यक्त करना ज़रूरी है। स्थितियां देखते हुए क्या पता, कल मैं खुद भी लिखने के लिए होऊं या न होऊं।

इससे पहले कि यह अछूता और अलिखित रहा जाए, आज लिखने जा रहा हूं। आप इसे स्वीकारने या नकारने के लिए ससम्मान पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।

हालांकि, कई दार्शनिकों और खगोलशास्त्रियों ने इससे मिलती-जुलती बातें ज़रूर कही हैं। लेकिन इस आवश्यक विषय पर अबतक बहुत शोध नहीं हो सके। इस विषय पर उतना गहरा शोध नहीं हो सका, जितनी इसे ज़रूरत है।

आज लिखने जा रहा हूं। पढ़िएगा और समझने का प्रयास करिएगा। पोस्ट लंबा है। किसी किताब की तरह इसे पढ़ डालिएगा। ब्रम्हांड से संबंधित एक झलक आपको देखने को मिल सकती है। मैं पूरा प्रयास करूंगा कि चीज़ें आपको समझ में आ जाएं…

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हम सब जानते हैं, हमारे ब्रम्हांड में कई गैलेक्सीज़ हैं। अभी तक 10^11 (यानी 100000000000) गैलेक्सीज की ही खोज हो पाई है। उसमें हमारी गैलेक्सी भी एक है। इसका नाम ‘मिल्की वे’ है। हिंदी में इसे ‘आकाश गंगा’ कहते हैं।

हमारी इस गैलेक्सी (आकाश गंगा) में भी अभी तक 10^11 तारों की खोज हो सकी है। यानी, अभी भी अनगिनत तारे खोजे जाने बाकी हैं।

हमारा सूर्य भी एक तारा ही है। सूर्य हमारी पृ्थ्वी से लगभग 6 लाख गुना बड़ा है। इसे ऐसे समझें कि सूर्य को अगर हम एक फुटबॉल मान लें तो, सूर्य में पृथ्वी जैसी 6 लाख छोटी गोलियां भरी जा सकती हैं। सूर्य से लाखों गुने बड़े तारे हमारी गैलेक्सी में हैं। ब्रम्हांड में तो और भी न जाने कितने बड़े-बड़े तारे होंगे।

इसी तरह से हमारा ‘सोलर सिस्टम’ (हिंदी में सौरमंडल) सूर्य के चारों ओर चक्कर काट रहा है। इसमें नौ ग्रह (8 ग्रह और एक छूद्र ग्रह) शामिल हैं। ये सभी ग्रह सूर्य के चारों और चक्कर काट रहे हैं।

सभी ग्रह अलग-अलग त्रिज्या के वृत्त में थ्री-डायमेंशनल स्पेस में चक्कर काट रहे हैं। इसीलिए ये कभी आपस में टकराते नहीं हैं।

इसी तरह से, हमारा सूर्य भी किसी बड़े सिस्टम के चारों ओर (अपने सभी नौ पिंडों को लेकर) चक्कर काट रहा है। इसी तरह से वह बड़ा निकाय भी किसी दूसरे बड़े पिंड के चारो ओर चक्कर काट रहा है।

ब्रम्हांड में इस तरह के कई सूर्य हैं। लाखों-करोड़ों सूर्य हैं। वो सब भी इसी प्रक्रिया में गतिमान हैं।

यानी, पहला, दूसरे के चारों और चक्कर काट रहा है। फिर दूसरा, पहले को साथ लेकर किसी तीसरे के चारों और चक्कर काट रहा है। फिर तीसरा, पहले और दूसरे को साथ लेकर किसी चौथे के चारों और चक्कर काट रहा है।

इस तरह से यह क्रम चलता ही जा रहा है, चलता ही जा रहा है, चलता ही जा रहा है।

फिजिक्स की भाषा में, इसके पीछे गुरुत्वाकर्षण बल की ताक़त है। इस तरह से हमारा पूरा ब्रम्हांड भी एक अन्य ब्रम्हांड के चारों ओर चक्कर काट रहा है।

यहीं से मल्टीवर्स या बहुब्रम्हांड यानी एक से अधिक ब्रम्हांडों की परिकल्पना का अंकुरण होता है।

और एक-दूसरे के चारों ओर चक्कर लगाने के पीछे जो ऊर्जा है, वह दो पिंडों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल की वज़ह से है।

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दरअसल, हर एक कण, हर दूसरे कण को प्रभावित करता है। यहां तक कि धरती पर गिरा एक सूखा तिनका भी सूर्य और ब्रम्हांड के हर कण को प्रभावित कर रहा है। वो अलग बात है कि उसका प्रभाव बेहद कम है। इसलिए हम नग्न आखों से उसका असर देख नहीं पाते।

यानी, इस ब्रम्हांड में सब ऊर्जा का खेल है। सब ऊर्जा संतुलन का खेल है। कुछ भी मुक्त नहीं है। सब बंधे हैं। ब्रम्हांड, गैलेक्सी, सौरमंडल, सूर्य, पृथ्वी, हम, आप, वृक्ष, पशु, पक्षी और हर वो चीज जिसे आप सोच सकते हैं, कुछ भी यहां मुक्त नहीं है। सब किसी मशीन के पुर्ज़ों की तरह अपने-अपने फंक्शन में लगे हैं।

यहां तक कि सूर्य को पिता, धरती को माता और बाकी सबको धरती की संतान कहे जाने के पीछे भी अपना तर्क है। हम जानते हैं, सूर्य की वज़ह से धूप होता है। धूप की वज़ह से गर्मी बढ़ती है। गर्मी की वज़ह से वाष्पीकरण की प्रक्रिया होती है। वाष्पीकरण की प्रक्रिया की वज़ह से बादल बनते हैं। बादलों की वज़ह से बारिश होती है। बारिश की वज़ह से धरती पर जलचक्र संतुलन बना है। और इसी वज़ह से धरती हरी-भरी है। धरती पर प्रजनन की प्रक्रिया सतत चल रही है।

अगर सूर्य धीरे-धीरे बुझ जाए (जो होना तय है), तो धरती सूख जाएगी। धरती मृत हो जाएगी।

कहते हैं, ब्रम्हांड में अभी भी लाखों-करोड़ों सूर्य हैं। ब्रम्हांड में इससे पहले भी लाखों-करोड़ों सूर्य थे। वो धीरे-धीरे बुझ गये। वो पृथ्वियां भी मर गईं। आज वो सभी लाखों-करोड़ों पृथ्वियां सूखी मिट्टी का बड़ा सा गोला मात्र बनकर ब्रम्हांड में तैर रही हैं। उनका कोई इतिहास भी नहीं है। जब कुछ बचा ही नहीं तो इतिहास बताएगा कौन! यही गति इस धरती का होना तय है। अभी नहीं, कुछ लाख वर्षों बाद।

इस तरह से इस ब्रम्हांड में कुछ भी फ्री नहीं है। कुछ भी निरपेक्ष नहीं है। कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं। यहां तक कि हमारे-आपके विचार तक निरपेक्ष नहीं हैं।

आप अपना जीवन पथ ही मुड़कर देख लीजिए। आप पाएंगे, आज आप जो कुछ भी हैं, वहां आपको पहुंचाने में समय के बहाव और घटनाओं के स्टेयरिंग ने आपको वहां तक पहुंचाया है। आप तो बस किसी लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट के अभिनेता मात्र बनकर रह गये।

कुल मिलाकर, इस ब्रम्हांड में कुछ भी मुक्त नहीं है। कुछ भी। एक तिनका भी सूर्य को प्रभावित करता है। सूर्य भी तिनके-तिनके को प्रभावित करता है।

यहां तक कि सूर्य दिन में दो-दो बार समुंदर को उठा-उठाकर पटक देता है, जिसे हम ज्वार-भाटा कहते हैं। हम देखते ही रह जाते हैं।

सोचिए, इतने अथाह समुंदर तक को जो सूरज प्रतिदिन दो बार उठाकर पटक देता है, आपको क्या लगता है, वह हमें-आपको प्रभावित नहीं करता है!

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अब आते हैं, रोचक तथ्यों पर…

सूर्य पर हर ग्यारह वर्षों पर सोलर तूफान आते हैं। धब्बे बनते हैं। यह घटना जब-जब होती है, तब-तब धरती पर उथल-पुथल मचती है।

इसी तरह से सूर्य पर हर 90 वर्षों के अंतराल पर बड़े-बड़े विस्फोटक गुबार बनते हैं। धब्बे बनते हैं। गैसों के गुब्बारे बनते हैं। फिर फटते हैं। महाविस्फोट होते हैं। सूर्य के अणुओं और ऊर्जा का पोलराइजेशन (ध्रुवीकरण) होता है।

उपर्युक्त दोनों ही स्थितियों में हमारे सौर मंडल में ऊर्जा संतुलन बिगड़ता है। उथल-पुथल मचता है। पूरी धरती पर भौतिक परिस्थितियों के अलावा व्यक्ति विशेष की मानसिक स्थिति तक पर गहरा असर पड़ता है।

इन दोनों में से सबसे ख़तरनाक असर सूर्य पर 90 वर्ष में होने वाली घटनाएं डालती हैं। इस 90 वर्ष के पूरे होने के वर्षों में धरती पर महामारियां फैल सकती हैं। अकाल पड़ सकते हैं। एक के बाद एक दुर्घटनाएं हो सकती हैं। धरती भूकंपों से भर जाती है। विश्वयुद्ध हो सकते हैं। धरती पर आत्महत्याएं बढ़ती हैं। लोगों की मति मारी जाती है। धरती पर ना-ना प्रकार से त्रासदियां ही त्रासदियां आती हैं।

अगर आप देश-दुनिया से अपडेट रहते हैं, तो आप इस समय उपर्युक्त घटनाओं के उदाहरणों से भरे पड़े होंगे। कोरोना, निसर्ग, बेमौसम ओलावृष्टि, बर्फबारी, गैस लीक़, ऑयल प्लांट में आग, यूरोप के एक वित्तमंत्री का आत्महत्या कर लेना, एक के बाद लगातार भूकंप, टिड्डी दलों का हमला…ये सब अकारण ही नहीं हो रहे हैं। इसके पीछे वज़ह है। आख़िर, इससे पहले आपने एकसाथ इतनी त्रासदियों को कभी देखा??? नहीं ना…???

ओशो तो यहां तक कहते हैं कि इन वर्षों में पैदा होने वाले बच्चे (चाहे वो किसी भी जीव के हों) औसत रूप से कम प्रतिभाशाली होंगे। क्योंकि ये एक तरह से सूर्य के बूढ़ा होने का वर्ष है। इन वर्षों में धरती पर ऊर्जा कम होती है। धरती अलसायी हुई, सुस्त होती है। सूरज थका हुआ सा होता है।

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इसके बाद सूरज फिर उभरना शुरू करता है। 45 वर्षों बाद सूरज फिर अपनी जवानी पर होता है। उस समय पूरी धरती (पूरा सौर मंडल) ऊर्जा से लबरेज़ होती है। उस समय धरती पर महापुरुषों के जन्म की संभावनाएं अधिकतम होती हैं।

अब पोस्ट बहुत लंबा हो चला है। इसके आगे के रोचक तथ्य अगले क्रम में लिखने का प्रयास करूंगा…

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