आओ हम भी ऑक्सीजन प्लांट लगाये

पालने से ही दे पर्यावरण संरक्षण की सीख

पिछले डेढ़ सालों से पूरा विश्व एक अदृश्य वायरस से लड़ रहा है ।भारत जैसे देश में पिछले दिनों जिस प्रकार ऑक्सीजन की कमी देखी गई वह भारत के लिए एक बहुत बड़ा सबक है कि हम पर्यावरण की तरफ ध्यान दें। जिस तरह से हमने ऑक्सीजन की कमी से हमारे अपनों को जूझते देखा है, तड़पते देखा है, और इस दुनिया से विदा होते हुए देखा है शायद ऐसा पहले कभी नहीं हुआ ।
ये सब हो रहा है भारत जैसे देश में, जिसे “अरण्य संस्कृति” वाला देश कहा जाता है। अरण्य का मतलब है हरा-भरा समृद्ध वन । भारत के वेदों में भी पर्यावरण संरक्षण की बात कही गई है अथर्ववेद में भूमि सूक्त पर्यावरण संरक्षण का ऐसा प्रथम लिखित दस्तावेज है। हमारे पूर्वज भी वृक्षों की महिमा को जानते थे और बरगद, नीम, पीपल व तुलसी आदि की पूजा करते थे कई वृक्षों को काटना मना था।
“सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण”
इन पंक्तियों से हमें राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव की अमृता देवी विश्नोई व उनके समाज के 363 लोगों के बलिदान की यादें ताजा हो जाती है जिन्होंने खेजड़ी के वृक्ष को बचाने के लिए अपने सिरों को कटवा दिया था। इसी तरह पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा जिनकी मृत्यु अभी हाल ही में हुई है, ने भी चिपको आंदोलन चलाकर कितने ही वृक्षों को जीवनदान दिया था क्योंकि वे आने वाली भयावह स्थिति को भली प्रकार से जानते थे। प्रकृति का इतना भयावह रूप हमने पहले कभी नहीं देखा। कहते हैं प्रकृति प्रत्येक 100 वर्ष बाद हमें चेताती है कि अब सुधर जाओ पर हम कहां मानते हैं? कितनी दोहरी मानसिकता है हमारी ?हमें अपने रहने के लिए पक्के मकान चाहिए वह भी आलीशान जिसका फर्श संगमरमर का हो, उसमें एसी हो । हमारे पास मोटर कार फ्रिज सब कुछ हो लेकिन हम कभी यह नहीं सोचते कि हमारे घर में कितने पेड़ पौधे हो ? जब हम कहीं बाहर घूमने जाते हैं तो हमें प्रकृति की गोद चाहिए पहाड़, नदियां हरा -भरा वातावरण यह सब हमें अच्छा लगता है। हम जब भी किसी रेस्तरां में जाते हैं तो जो गांव के स्टाइल वाला होता है वहां हमें जाना अच्छा लगता है। चाहे घर पर हम डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हैं,लेकिन वहां जाकर हम खाट या चारपाई पर बैठकर खाना खाएंगे। भले ही हम मोटर गाड़ियों में घूम रहे हो लेकिन वहां बैलगाड़ी में बैठेंगे और फोटो भी खिंचवाएंगे कितने स्वार्थी हैं हम।
इस महामारी के द्वारा प्रकृति ने हमें संदेश दिया है कि हम पर्यावरण को संरक्षित करें वापस प्रकृति को जो कुछ हमने लिया है उसे वापस लौटाएं। कुछ ऐसा उपाय करें जिससे कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को ऐसा दोबारा कभी न सहना पड़े ।

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पूरे विश्व मे पर्यावरण को बचाने के अनेकों प्रयास किये जाते हैं जिसमे विशेष दिन भी सम्मिलित है-जैसे कि पर्यावरण दिवस ,पृथ्वी सम्मेलन, जैव विविधता दिवस, विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस, वन्य जीव सप्ताह व माह। वनों और जीव-जंतु को संरक्षित रखने के लिए सैकड़ों अभ्यारण्यों को राष्ट्रीय, राज्य स्तर पर संरक्षित किया गया है | भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियनम 1986 भी इसी श्रृंखला में बना ताकि भावी पीढ़ी के लिए जैव विविधता को बचाया जा सके। इन सब का एक ही उद्देश्य है पर्यावरण का समुचित उपयोग और जो कुछ भी हमने पर्यावरण से लिया है उसे देने की कोशिश,और जो चीजें पुनः चक्रित हो सकती हो वह भी हम उसे वापस करें ।
हम जानते हैं कि भारत एक जैव विविधता वाला देश है यहां पूरी दुनिया में पाए जाने वाले स्तनधारियों का 7.6%, पक्षियों का 12.6% , सरीसृपों का 6.2% और समस्त संसार में पाए जाने वाले फूलों की जो प्रजातियां हैं उसका यहां पर 6% हैं । इतना विशाल भंडार है हमारे पास, परन्हतु हमारी ही गलतियों से यह धीरे-धीरे कम होते जा रहे है और जीव-धारियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है और कई विलुप्त होने की कगार पर खड़ी है।

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ऐसे में सरकार भी लोगों को पर्द्वायावरण के प्रारति सचेत, संवेदनशील, जिम्मेदार और जागरूक बनाने के लिए पौधे निशुल्क दे रही हैं। अभी सरकार ने एलान किया है हर परिवार को 5 औषधीय पौधे देने की। हर साल हम जुलाई और अगस्त के माह में बहुत से पौधे लगाते हैं लेकिन सिर्फ हम पेड़ लगाकर ही छोड़ देते हैं क्या कभी हम उनकी देखभाल भी करते हैं? हमारी प्रकृति ने हमें यह संदेश दिया है कि बच्चों सुधर जाओ प्रकृति की ओर लौटो । हमें हमारी प्रकृति को बचाने के लिए बहुत से उपाय करने होंगे जैसे- बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण की सीख , जिस प्रकार से संस्कारों की सीख देते हैं उसी तरीके से पेड़ों के प्रति दयालुता और उनके संरक्षण की सीख हमें देनी होगी, ज्यादा से ज्यादा पेड़ चाहे हम न लगाएं सिर्फ एक पौधे को ही पेड़ बना दें, जब भी मकान बनवाएं उसमें कुछ जगह पेड़ो के लिए भी छोड़ें, घर में कोई भी मांगलिक उत्सव या किसी की पुण्यतिथि होने पर हम एक पेड़ अवश्य लगाएं, विद्यालय में भी जन्मदिन पर अभिभावक उनका जन्मदिन मनाते हैं उनके लिए टॉफी वगैरा बांटते हैं उसकी जगह यदि एक अभिभावक बच्चे के जन्मदिन पर एक पेड़ लगा दे और प्रतिवर्ष जन्मदिन पर आकर देखे कि वह कितना बड़ा हुआ है जिसकी जिम्मेदारी सिर्फ उसी बच्चे को दी जाए तो शायद विद्यालय भी हमारा हरा-भरा होगा, बारिश के दिनों में हम बहुत सारे बीजों और गुठलियों को इकट्ठा कर रोड की साइट पर फेंके ताकि वह आने वाले दिनों में पेड़ बन जाए, इसी प्रकार जब भी भी मकान बनाए तो छत पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण करवाएं, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें , पुनः चक्रित होने वाले प्लास्टिक का ही उपयोग करें, भले ही 1000 पौधे न लगाएं बस 10 पौधों को जीवनदान देकर पेड़ बना दें, और जितना भी हो सके जो भी हमें प्रकृति ने दिया है उसे वापस लौटाने की कोशिश करे ।

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इन उपायों के द्वारा यदि हम पर्यावरण का संरक्षण करें तो हमारे आने वाली पीढ़ियां कभी भी इस तरीके से ऑक्सीजन की कमी से तड़प -तड़प कर दम नहीं तोड़ेगी और ना ही कभी कोई इस प्रकार की बीमारी या महामारी हमारे यहां आ पाएगी। आज भी बहुत से ऐसे गांव हैं जहां पर बढे-बुजुर्ग बड़, पीपल और नीम के पेड़ लगाने हेतु लोगों को प्रोत्साहित कर रहे है ताकि वहां रहने वाले लोगों को शुद्ध  ऑक्सीजन हर समय मिल सके | तो आइए हम प्रण लें अपने जीवन मे ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा कर उनकी सम्पूर्ण देखभाल करेंगे।
” एक पेड़ लगाने का पुण्य सौ पुत्रों के बराबर है।” तो आओ पुण्य कमाएं एक ऑक्सीजन प्लांट हम भी लगाएं।
लेखक: शोभा कँवर
बालिका गौरव पुरस्कार से सम्मानित,अध्यापिका-राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बरुन्धन, बूंदी

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