मां की मौत के बाद बेटों ने फेरा मुंह तो बेटी ने निभाया फर्ज, चिता को दी मुखाग्नि

-मां के अंतिम दर्शन को नहीं आए 3 बेटे और 2 बड़ी बेटियां,
-32 साल में एक बार भी बीमार मां का हाल जानने नहीं आए बेटे

TISMedia@Kota.  कहते हैं, बेटी किसी बेटे से कम नहीं होती, जो काम बेटा कर सकता है वही काम बेटी भी कर सकती है। काम चाहे घर का हो या घर की चारदीवारी से बाहर का। बेटी किसी भी हालात में बेटों से कम नहीं होती। इसी की एक मिसाल रविवार को शहर में देखने को मिली, जब एक बेटी ने बेटे का फर्ज निभाते हुए अपनी दिवंगत मां की पार्थिव देह को मुखाग्नि दी। दरअसल, लाडपुरा के विक्रम चौक निवासी 100 वर्षीय अशर्फी अग्रवाल का शनिवार सुबह निधन हो गया था। उनके तीन पुत्र हैं, जो मां के अंतिम दर्शन तक को नहीं आए। ऐसे में उनकी सबसे छोटी बेटी ने न केवल चिता को मुखाग्नि दी बल्कि मां को कांधा भी दिया।

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अंतिम संस्कार में नहीं आए 3 बेटे और 2 बेटियां
अशर्फी देवी के 3 बेटे और 3 बेटियां हैं। मां के अंतिम संस्कार में बेटों के अलावा दोनों बेटियां भी नहीं आई। अशर्फी देवी के पति रामभरोसी लाल अग्रवाल का 1989 में ही निधन हो गया था। इसके बाद तीनों पुत्र संपत्ति में से अपना हिस्सा लेकर बूढ़ी व बीमार मां को असहाय छोड़कर चले गए। इसके बाद वे आज तक नहीं लौटे। वहीं, दो बेटियां भी मां से कभी हालचाल पूछने नहीं आई। ऐसे में, अपनी मां को असहाय देख सबसे छोटी बेटी लीना अग्रवाल (46) ने ही मां की सेवा की।

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मां की सेवा के चलते पति भी छोड़ गया

मां की सेवा करते हुए लीना ने अपनी कॉलेज स्तर की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उनका विवाह हुआ। इसके बाद एक बेटे और एक बेटी की परवरिश करने लगी। साथ में मां की देखभाल भी करती रहीं। मां की सेवा को लेकर लीना की पति से अनबन होने लगी। जिसके बाद 2004 में पति भी छोड़कर चला गया। तब लीना ने 17 वर्षीय बेटे व 16 वर्षीय बेटी को भी मां के साथ पाला। इस दौरान लीना ने कभी हिम्मत नहीं हारी. वह ट्यूशन करके अपनी मां व बच्चों का पालन करती रही।

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बेटों ने मुंह फेरा तो बेटी ने निभाया फर्ज
मां की मृत्यु पर भी जब बेटे नहीं लौटे तो लीना ने ही मां का विधिवत रूप से अंतिम संस्कार किया। उनहोंने कर्मयोगी सेवा संस्थान के अध्यक्ष राजाराम जैन कर्मयोगी से संपर्क किया। कर्मयोगी ने किशोरपुरा मुक्तिधाम पर अंतिम संस्कार की व्यवस्थाएं की। लीना ने स्वयं अपनी मां को कंधा दिया। मुक्तिधाम पर विधिवत अंतिम संस्कार किया। इस दौरान परिवार का कोई सदस्य अंतिम संस्कार में मौजूद नहीं था। कर्मयोगी संस्था परिवार के चार सदस्यों की उपस्थिति में अंतिम संस्कार किया गया।

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