किसानों के आगे झुका केंद्र: कृषि बिलों में संशोधन को तैयार मोदी सरकार

-केंद्रीय मंत्री ने कोटा में पत्रकार वार्ता में किया खुलासा
-किसान आंदोलन पर मंत्री ने विपक्षी दलों पर साधा निशाना

कोटा. एक पखवाड़े की जद्दोजहद के बाद आखिरकार मोदी सरकार तीनों कृषि बिलों में बिना शर्त संशोधन करने को तैयार हो गई है। सरकार की तरफ से साफ किया गया है कि तीनों कानूनों को पूरी तरह वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन किसानों के सुझावों पर विचार व बातचीत करने और संशोधन करने को तैयार है। यह खुलासा केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने बुधवार को अपने एक दिवसीय कोटा प्रवास के दौरान किया है। इसके बावजूद आंदोलनकारी पूरी तरह से तीनों कृषि बिलों को खारिज करने की मांग पर अड़े हैं। इस पर भाजपा ने विपक्षी दलों पर किसान आंदोलन की आड़ में राजनीति करने का आरोप लगाया है।

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…फिर विरोध क्यों?
केंद्रीय मंत्री मेघवाल का कहना है कि किसान आंदोलन में किसानों के वास्तविक मुद्दों पर राजनीति हावी हो रही है। मोदी सरकार ने नए कृषि कानूनों में वही प्रावधान लागू करने की कोशिश की है जो कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार करने की कोशिश कर रही थी। ऐसे में आज जब सरकार उन्हीं प्रावधानों को लागू करने की कोशिश कर रही है तो इसका विरोध क्यों हो रहा है…? कृषि सुधारों पर राजनीति भारी पड़ती दिख रही है। यह आंदोलन अब किसानों का नहीं बल्कि राजनेतिक आंदोलन हो गया है।

किसानों को मुद्दों से भटकाया जा रहा
कोटा दौरे पर आए मंत्री अर्जुनराम ने सर्किट हाउस में पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि वर्ष 1990 से कृषि क्षेत्र में सुधार के प्रयास किए जाते रहे हैं। तत्कालीन वीपी सिंह,नरसिम्हा राव व अटल सरकार के समय में भी प्रयास किए गए थे। यूपीए सरकार में मंत्री रहे शरद पवार भी इसके समर्थन में थे। अब केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में वही सुधार करने की कोशिश कर रही तो राजनेति पार्टियां किसानों बरगला रही है। उन्हें मुद्दों से भटका रही है।

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विपक्षी दल पर साधा निशाना
मंत्री अर्जुनराम ने विपक्षी दल पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्होंने अपने घोषणा पत्रों में 33 कानूनों से संबंधित जो वादे किए थे, अब मोदी सरकार ने कानून बना दिया है, तो वही लोग इसका विरोध कर रहे हैं। किसानों की आड़ में अपनी रोटियां सेक रही है। एनसीपी नेता शरद पंवार ने खुद सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था। भानु प्रताप कमेटी, हुड्डा और शरद जोशी कमेटी ने कृषि सुधार के लिए कहा था। जब किसानों की मांग होती है तभी उसे घोषणा पत्र में शामिल किया जाता है। सभी पार्टियों ने दावा किया था, कृषि कानून लेकर आएंगे। सब्जी में एपीएमसी व एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट समाप्त करेंगे। यहीं कानून हमने बनाएं हैं।

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अब लिखित में होते हैं करार
एमएसपी बंद नहीं हो रही, यह जारी रहेगा। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग पहले से चल रही है। पहले करार लिखित में नहीं होता था लेकिन अब लिखित में होने से किसानों को फायदा होगा। कुछ राजनेतिक पार्टियां सुधार के खिलाफ है यह बात किसान संगठनों को समझ में नहीं आ रही। सरकार संशोधन के लिए तैयार है।

आंदोलन में ऐसे लोग शामिल, जिनका कृषि से कोई वास्ता नहीं

मंत्री ने कहा कि किसान आंदोलन में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनका कृषि से कोई संबंध नहीं है। जब किसान संगठन हमसे वार्ता करते हैं तो ऐसा लगता है कि किसान मान जाएंगे, वार्ता सफल हो जाएगी। लेकिन, उनमें राजनेतिक पार्टियों से जुड़े कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो ऐसी मांगे सामने रख देते हैं, जो पूरी नहीं हो सकती। कुछ मुद्दों पर बात बनती है तो जेल में बंद लोगों को छोडऩे की बात पर अड़ जाते हैं। अब जेल में बंद लोगों का किसान आंदोलन से क्या लेना-देना है। वह कोर्ट का मामला है, यदि कोर्ट ने जमानत रिजेक्ट कर दी तो इसमें सरकार क्या कर सकती है। बीच-बीच में ऐसी डिमांड ले आते हैं, जिसके कारण संवाद में दिक्कत होती है। मुझे लगता है संवाद के माध्ययम से यह मसला हल होगा।

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