राजस्थानः मस्त रहिए, गहलोत सरकार पर कोई खतरा नहीं है…

  • अशोक गहलोत के पास सत्ता में बने रहने के लिए है पर्याप्त बहुमत 
  • सचिन पायलट खेमा भाजपा के साथ मिलकर भी नहीं गिरा सकता राजस्थान की सरकार 

TISMedia@Kota. राजस्थान के आसमान में सियासी गुबार जमकर छाया हुआ है… बयानों के बादल भी जमकर उमड़-घुमड़ रहे हैं… हर रोज नए खेमे वजूद में आ रहे हैं और पुराने दम तोड़ते दिखाई दे रहे हैं… अखबार भी खूब सुर्खियां परोस रहे हैं कि मरुधरा की सियासत में कुछ भी अच्छा नहीं है, लेकिन #TISMedia ने जो आंकड़े जुटाए हैं उनके मुताबिक यह सियासी सर्कस से ज्यादा कुछ भी नहीं है। सच तो यह है कि अशोक गहलोत की सरकार को रत्ती भर भी किसी से खतरा नहीं चाहे वह विपक्ष हो या फिर कांग्रेस के बागी ही क्यों न हों।

अशोक गहलोत को सियासी जादूगर यूं ही नहीं कहा जाता। पूरी तरह जमींदोज हो जाने के बावजूद सत्ता में वापसी करना और फिर उसे संभाले रखना बखूबी आता है। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत अच्छी तरह समझ चुके हैं कि उन्हें बाहरी लोगों से ज्यादा खतरा कांग्रेस के अंदर से है। इसीलिए दूसरे और तीसरे कार्यकाल में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी को जिंदा रखने, आधा दर्जन से ज्यादा विधायक बनवाने और फिर उन्हें तोड़कर अपने खेमे में शामिल करने का बेजोड़ तरीका ढ़ूंढ निकाला।

Read More: वसुंधरा-ज्योतिरादित्य बनेंगे केंद्र में मंत्री, मोदी कैबिनेट में बनी सहमति!

निर्दलीयों को रखते हैं साथ
बसपा ही क्यूं अशोक गहलोत हर चुनाव में निर्दलीय विधायकों पर न सिर्फ डोरे डालने बल्कि उन्हें अपने खेमे में शामिल करने का जादू भी खूब चलाते हैं। इस बार भी भले ही 13 निर्दलीय विधायक जीतकर राजस्थान की विधानसभा में पहुंचे हों, लेकिन उनमें से 12 विधायक गहलोत की ही भाषा बोल रहे हैं। यह विधायक गहलोत को ही अपना नेता मानते हैं और उनके साथ हर तरह की सियासी पारी खेलने को खुले मन से तैयार हैं। एक तरह से कहें तो यह गहलोत के धड़े के तौर पर ही उनकी खिलाफत करने वालों को जवाब देने में जुट जाते हैं।

Read More: जैन समाज में उबाल, अनूप मंडल पर प्रतिबंध लगाने की मांग 

चूक गए सचिन
सचिन पायलट ने भले ही कांग्रेस का राजस्थान में कुशल नेतृत्व किया हो, लेकिन वह भी गहलोत की इस सियासत को समझने से चूक गए। नतीजा, भाजपा की शह मिलने के बाद जब पायलट बागी हुए तो उन्हें लगा कि कांग्रेस के 40 विधायक उनके साथ हैं और भाजपा के 71 विधायकों की मदद से वह मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया सकते हैं, लेकिन बात जैसे ही इन विधायकों की दिल्ली में भाजपा आलाकमान के सामने परेड़ कराने की आई तो 18 विधायक एक झटके में सचिन का साथ छोड़ गए। बचे हुए 22 विधायकों में से भी अशोक गहलोत ने तीन को अपने खेमे में मिला लिया। नतीजा 19 विधायकों के साथ सचिन पायलट न भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की हालत में रहे और न ही कांग्रेस को तोड़ने की। ऊपर से जिद्दी स्वभाव के चलते कांग्रेस आलाकमान ने भी सचिन पायलट का साथ छोड़ दिया।

Read More: कोरोना की तीसरी लहर से कांपे सीएम योगी, प्रधानों को लिख डाली ये चिट्ठी… 

कोई नहीं है टक्कर में
फिलहाल राजस्थान के सियासी समीकरणों का आंकलन करें तो अशोक गहलोत की सरकार को दूर दूर तक किसी भी तरह का कोई खतरा दिखाई नहीं दे रहा है। वरिष्ठ पत्रकार राजेश कसेरा कहते हैं कि भाजपा समेत बाकी का विपक्ष भले ही अशोक गहलोत के पास समर्थन की कमी का दावा करता फिरे, लेकिन सच्चाई यह है कि गहलोत के पास राजस्थान की सत्ता में बने रहने के लिए बहुमत से भी ज्यादा विधायक हैं। सचिन पायलट के खेमे में 19 विधायक जाते ही अशोक गहलोत ने सबसे पहले बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर आए सभी 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय करवाया। उसके बाद 12 निर्दलीयों को अपने साथ मिलाया और वहीं राष्ट्रीय लोकदल के इकलौते विधायक डॉ. सुभाष गर्ग को पहले से ही मंत्री पद देकर अपने विश्वास में ले लिया। यानि कांग्रेस के 19 बागी विधायकों के जवाब में गहलोत ने बाहरी 19 विधायकों को अपने साथ खड़ा कर लिया। नतीजन, राजस्थान के सियासी गलियारों में कितना भी बयानी हंगामा बरपा हो, लेकिन गहलोत सरकार का बाल भी बांका करने की हैसियत फिलहाल किसी के पास नहीं है।

राजस्थान विधानसभा  में दलगत स्थितिः- 
पार्टी विधायक
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 106
भारतीय जनता पार्टी71
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी 03
भारतीय ट्रायबल पार्टी 02
सीपीआई (एम)02
राष्ट्रीय लोकदल 01

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!