राजनैतिक महिलाओं के वर्चस्व का संघर्ष

राजनीति में महिलाओं का भविष्य

भारतीय लोकतांत्रिक देश पुरुष प्रधान समाज से निर्मित है । जहाँ की राजनीति में हमेशा से ही पुरुषों को अधिक महत्व दिया जाता रहा है। जिसका एक कारण है राजनीति में महिलाओं का पीछे रहना। राजनीति के क्षेत्र में भारत ही नहीं अमेरिका, पाकिस्तान, चीन जैसे देशों में भी महिलाओं को कम देखा जाता है। लेकिन जैसे-जैसे  शिक्षा का विकास होने लगा वैसे-वैसे लोगों कि सोच में परिवर्तन होने लगा वैसे ही महिलाओं की राजनीति में दिलचस्पी भी बढ़ने लगीं। आज छोटे से बड़े हर क्षेत्र में महिलाएं आगे है वहीं एक से बढ़कर एक भूमिका निभा रही है। यहां तक कि सरहद पर भी देश की रक्षा के लिए लड़ रही है। चाहे वह वायु सेना में हो या जल , थल सेना हो या आतंकवादियों को हराने में।

महिलाएं धीरे – धीरे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। महिलाएं समाज की सेवा करने में पुरुषों से आगे है। लेकिन फिर भी राजनीति में महिलाओं को कम दर्जा दिया जाता है। जिसका मुख्य कारण भारत में शिक्षा की कमी, महिलाओं को राजनीति की जानकारी ना होना, महिलाओं को घर, बच्चे और परिवार तक ही सीमित रखना और उनकी देखभाल करना, महिलाओं को राजनीति में पुरुषों के मुकाबले में सुरक्षा न मिल पाना, महिलाओं को कमजोर समझा जाना, उनको इज्जत और सम्मान की दृष्टि से नहीं बल्कि हीन भावना व गलत भावना से देखा जाना। देखा जाए तो राजनीति का क्षेत्र समाज सेवा का केंद्र नहीं बल्कि एक व्यवसाय का केंद्र बनता जा रहा है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो आए दिन चर्चा में बना रहता है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि ‘ किसी भी देश का विकास वहां कि महिलाओं के विकास से जुड़ा है’।

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लोगों की पिछड़ी हुई सोच के कारण आज महिलाओं को राजनीति में दर्जा नहीं मिल पा रहा है। किसी भी पार्टी में महिलाओं की संख्या लगभग कम ही रहती है। देखा जाए 30% महिलाएं भी राजनीति में नहीं दिखती। लैंगिक असमानता भी इसका एक मुख्य कारण है। लोगों के मन में महिलाओं को लेकर एक घटिया सोच बनी हुई है कि महिलाएं किसी भी परिस्थिति से लडने में सक्षम नहीं है। उनका मानना है कि महिलाएं पुरूषों के मुकाबले कम हिम्मत रखती है। लेकिन असल बात तो यह है कि उनको राजनीति के क्षेत्र में सुरक्षित स्थान नहीं दिया जाता है। फिर भी महिलाएं निडरता से राजनीति में भाग के रही है और अपनी जगह स्थापित कर रही है। महिलाएं पुरुषों से ज्यादा अपना कर्तव्य निभा रही है। भारत के संविधान में भी जेंडर समानता को लेकर संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14-18 में लिंग, जाति, रंग-रूप, समता व समानता और स्वतंत्रता व जाति धर्म के आधार पर जीने का अधिकार देता है। लेकिन फिर भी राजनीति में महिलाओं को आने से रोका जाता है उन्हें पुरुषों से कम आंका जाता है। इसलिए महिलाएं राजनीति में कदम रखने से कतराती है। राजनीति में महिलाएं जाना तो चाहती है  उनका प्रतिनिधित्व न के बराबर माना जाता है।
पंचायती राज व्यवस्था के कारण राजनीति में महिलाओं को आगे लाने के लिए सरकार द्वारा 33% आरक्षण प्रदान किया गया। आरक्षण मिलने पर महिलाओं को समाज में और राजनीति में आगे बढ़ने का मौका मिला है जिससे महिलाओं को भी हिम्मत मिली है। वर्तमान में महिलाएं वार्ड पार्षद, पंचायत स्तर पर चुनाव लड़ रही है। इससे महिलाएं राजनीति में आई तो है पर वहाँ आम तौर पर यह देखा गया है महिलाओं के स्थान पर पुरुष ही अपनी राजनीति चमका रहे है | ज्यादातर पंचायत चुनाव या बड़ी-बड़ी पार्टियों में देखा जाता है कि यदि कोई भी महिला चुनाव में खड़ी होती है और उसके विरुद्ध दूसरी पार्टी महिला के चरित्र पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना शुरू कर देते है | वहीं चुनाव जीतने पर इनका उद्देश्य समाज का कल्याण नहीं अपितु खुद ऊंचा दिखाना रह गया है और चुनाव जीतने के बाद भी महिलाओं की सारी जिम्मेदारी पुरुष अपने हाथो में ले लेते है जहां महिला की आवश्यकता होती है केवल वहीं उनको बुलाया जाता है। दूसरी तरफ राजनीति में वहीं महिलाए ज्यादा दिखती है जिनका आर्थिक स्तर अच्छा हो या जिनका परिवार किसी राजनीति सत्ता से संबंध रखता हो | उन महिलाओं को ज्यादा मौका दिया जाता है जो राज घरानों से सम्बंधित हो। और यही कारण है कि अन्य परिवारों की महिलाएं राजनीति को लेकर जागरूक नहीं हो पा रही और जो जागरूक है वह आगे नहीं जा पा रही है। समाज इस बात को स्वीकार नहीं करता है कि नारी है तो कल है। भारत वर्तमान में तेजी से सशक्त अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ रहा है जिसमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की चुनौती है। चुनावी राजनीति में महिलाओं के लिए सरकार ने कई कदम उठाए है जैसे- महिलाओं के लिए शिक्षा में बढ़ोतरी, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना व उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा देना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लैंगिक समानता, देश के लिए सेवा कि भावना |

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भारतीय संसद में महिलाओं का हिस्सा लगभग 11% है जबकि बेल्जियम, मेक्सिको जैसे देशों में 50 % व आस्ट्रेलिया, जर्मनी जैसे देखो में महिलाओं की भागीदारी 40 % है। देखा जाए तो हर स्तर पर महिलाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है सरकार द्वारा भी योजनाएं चलाई जा रही है हर क्षेत्र  में  प्रोत्साहन  दिया जा रहा है चाहे वह शिक्षा का हो या डॉक्टर या इंजीनियर लेकिन राजनीति में उन्हें आगे बढ़ने से रोका जाता है व असुरक्षित महसूस कराया जाता रहा है। लेकिन फिर भी महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ती जा रही है।
राजनीति में नारीवाद: सरोजनी नायडू भारत की कोकिला और महान स्वतंत्रता सेनानी एक प्रबल, शक्तिशाली नेत्री के रूप रही है  गोपाल कृष्ण गोखले और गांधीजी जैसे महान नेताओ के साथ उनका नाम है वह एक नारीवादी महिला के रूप में जानी जाती है। दूसरी राजनेता भारतीय मूल की महिला कमला हैरिस जो हाल ही में जनवरी 2021 में राष्ट्रपति (जो  बाइडेन )के साथ उपराष्ट्रपति बनीं, उन्होंने 2020 के चुनाव में,  राष्ट्रपति (डोनाल्ड ट्रम्प) और उपराष्ट्रपति माइक पेंस को हराया। वह संयुक्त राज्य अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति, अमेरिकी इतिहास में सबसे अधिक रैंकिंग वाली महिला निर्वाचित अधिकारी, पहली अफ्रीकी-अमेरिकी उपराष्ट्रपति और पहली एशियाई अमेरिकी उपराष्ट्रपति हैं। वहीं तीसरी राजनेता और दबंग महिला पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बैनर्जी जो आज भी सत्ता में अपने दम पर अपनी जगह बनाए हुए और हजारों विकट परिस्थितियों के बावजूद भी विधानसभा चुनाव जीत जाती है। ऐसी बहुत सी महिलाएं है जो अपने दम पर राजनीति में रह रही है।

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लेकिन राजनीति में समाज हित के बारे में बहुत कम राजनेता सोचते है व लोगों के हित की जगह अपने लिए काम करते है। और जो नेता केवल राजनीति को एक व्यवसाय के रूप में देखते है वहीं महिलाओं को राजनीति में कदम नहीं रखने देते है। राजनीति में महिलाओं के आर्थिक नीति को जोड़कर देखा जाता है। वर्तमान में भारत “सतत् विकास लक्ष्य 2030” की प्राप्ति के लिए अग्रसर है। इस लक्ष्य में सर्वप्रथम महिलाओं की सहभागिता न केवल चुनावी क्षेत्र में अपितु उन क्षेत्रों में सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जो महिलाओं को विकास की ओर ले जाएगी। महिलायें हमेशा कहती हैं, ‘ हम वो सब कर सकते हैं जो पुरुष कर सकते हैं। लेकिन क्या कभी किसी पुरुष ने कहा है कि ‘हम वो सब कर सकते हैं जो एक औरत कर सकती है………..कभी नहीं |
संक्षिप्त रूप में देखा जाये तो महिलाओं को हर क्षेत्र में सम्मान देना, उनकी बात का आदर करना व हर जगह प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है चाहिए चाहे वह शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीति का क्षेत्र हो या परिवार में ही उनकी भागेदारी को महत्व देना हो । परन्तु आज भी समाज में कई परिवारों में महिलाओ को शिक्षा से वंचित रखा जाता है जो भी महिलाओं के विकास में एक बड़ी बांधा है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को लेकर लोगों की सोच पीछे है किन्तु यदि महिलाओं को शिक्षा व राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ने दिया जाय और परिवार व समाज की सोच में बदलाव लाए तो महिलाए भी अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा के साथ निभा सकती है।

लेखिका: कीर्ति शर्मा
छात्राध्यापिका 

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