VMOU: राजभवन के आदेशों की कुलपति गोदारा ने की फिर अवहेलना, बनाईं मनमानी कमेटियां
- कार्यकाल के अंतिम दिनों में ले रहे नीतिगत फैसले, मनमानी जांच कमेटियां बनाने में जुटे कुलपति गोदारा
- राजभवन ने 1 फरवरी और 3 जून को पत्र भेजकर लगाई थी रोक, राजभवन के आदेशों को भी बताया धत्ता
TISMedia@Kota चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आरएल गोदारा अब पूरी मनमानी पर उतारू हैं। राजभवन के आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा अगर उनके गलत कामों का विरोध किया जाता है तो उसे बेइज्जत करते हैं और बाहरी व्यक्तियों से फाइलों का परीक्षण करावाकर उसे नोटिस देते हैं।
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शुक्रवार शाम को कुलपति गोदारा ने राजभवन द्वारा नीतिगत फैसले करने पर जो रोक लगाई गई थी, उस आदेश को एक बार फिर तार-तार कर डाला। कुलपति गोदारा ने एमपीडी विभाग में किताबों को छापने वाली कंपनी सरस्वती प्रेस मथुरा के बकाए के भुगतान के लिए 20 जनवरी 2022 को हुई प्रबंध मंडल की 100वीं बैठक में सूचित किया था कि एक आंतरिक कमेटी गठित कर भुगतान के मामले में तथ्यात्मक गणना व टिप्पणी को अगली प्रबंध मंडल की बैठक में विचार के लिए रखा जाएगा। इस बाबत कुलपति गोदारा ने प्रोफेसर यूसी सांखला की अध्यक्षता में एक भारी-भरकम 10 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। गौर करने वाली बात यह है कि बोर्ड की बैठक में आंतरिक स्तर पर कमेटी बनाने की बात कही गई थी, लेकिन इसमें तीन बाहरी सदस्यों को रखा गया। इनमें प्रोफेसर सांखला के अलावा संपत लाल सोनगरा और वीएमओयू एलुमिनाई एसोशिएसन के अध्यक्ष अरूण त्यागी को भी कुलपति गोदारा ने जबरन सदस्य बनाया। जबकि त्यागी विश्वविद्यालय के कर्मचारी नहीं हैं।
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बैठक का मुद्दा ही बदल डाला
कमेटी की फरवरी से अब तक छह बैठकें आयोजित की गई थीं, लेकिन तथ्यात्मक गणना और टिप्पणी का काम छोड़कर बाकी सारा काम किया गया। 17 जून 2022 को विश्वविद्यालय में हुई इस कमेटी की बैठक में कुलपति के दबाव में बैठक का ‘टर्म आफ रिफरेंस’ ही बदल दिया गया। हालांकि मजे की बात यह रही कि कमेटी के पांच सदस्य प्रस्ताव के विरोध में थे और केवल चार सदस्य ही प्रस्ताव के पक्ष में थे। बाद में कमेटी अध्यक्ष ने घालमेल कर ‘‘टर्म आफ रिफरेंस’’ बदलने का निर्णय कर दिया और कुलपति गोदारा ने पूरी कमेटी के समेकित फैसले को दरकिनार कर कमेटी के अध्यक्ष प्रोफेसर सांखला के फैसले का एकतरफा अनुमोदन भी कर दिया। इस फैसले से विश्वविद्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों में काफी रोष व्याप्त है। गौरतलब हो कि बीती 3 जून 2022 को ही विश्वविद्यालय के अधिकारियों-कर्मचारियों का मनमाने तरीके से तबादला करने के प्रकरण में राजभवन की फटकार खा चुके कुलपति गोदारा अब भी अपनी मनमानी करने से चूक नहीं रहे हैं।
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परीक्षा परिणाम से मतलब नहीं, सियासत पर जोर
राजभवन ने 1 फरवरी 2022 को राज्य के सभी विश्वविद्यालय के कुलपतियों के लिए निकाले गए पत्र का हवाला देते हुए कड़ा निर्देश दिया था कि कार्यकाल के अंतिम तीन महीनों में कुलपतिगण कोई नीतिगत निर्णय न करें। बावजूद इसके प्रोफेसर गोदारा पर राजभवन के आदेशों का कोई असर नहीं हो रहा है और वह लगातार उन आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं। विवि के सूत्रों का कहना है कि कुलपति गोदारा की मनमानी से अधिकारी-कर्मचारी तो परेशान हैं ही साथ ही राज्य सरकार की भी किरकिरी हो रही है। हजारों छात्रों के रिजल्ट लंबित हैं और दिसंबर 2020 तथा जनवरी 2021 से परीक्षाएं न होने से लाखों छात्र सड़कों पर घूम रहे हैं तथा धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।