केरलः माकपा को चुनौती दूसरी संतप्ता से !

केरल के चुनावों की समीक्षा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव

केरल मार्क्सवादी कम्युनिस्टों द्वारा उसके पति की हत्या से विधवा हुयी केके रमा भी अब विधानसभा का चुनाव लड़ रहीं हैं। सोनिया कांग्रेस—नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा रमा का पूर्ण समर्थन कर रहा है। वडकर (कोजिकोड जिला) से माकपा के प्रतिकार में रमा अपना विरोध मतपेटियों द्वारा व्यक्त करेंगी।  – के. विक्रम राव

रमा की गाथा बड़ी त्रासदी और विडंबना से भरी है। उसके स्वर्गीय पति टीजी चन्द्रशेखरन माकपा के जानेमाने नेता थे। स्टूडेन्ट फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआई) के क्रियाशील अगुवा रहे थे। माकपा के वरिष्ठों में थे। मगर माकपा मुख्यमंत्री पिनरायी वियजन के आलोचक थे। एक दिन (4 मई 2012) को वह ओचिंत्यन गांव से किसी विवाह समारोह में शिरकत कर मोटरबाइक पर घर लौट रहे थे, तो करीब पन्द्रह लोगों ने उन्हें काट डाला, टुकड़े—टुकड़े कर दिये। मुकदमा चला तो बारह हत्यारों को आजीवन कारावास हुआ। इनमें चार लोग माकपा के वरिष्ठ नेता थे। इस हत्या पर टिप्पणी करते पूर्व माकपा मुख्यमंत्री और राज्य के वरिष्ठतम कम्युनिस्ट नेता वीएस अच्युतानन्दन ने आक्रोश व्यक्त किया था और घोर भर्त्सना की थी। क्षेत्र में वर्षों से चन्द्रशेखरन अत्यधिक लोकप्रिय रहे। उनकी आलोचना थी कि विजयन ने माकपा को पांच सितारा संस्कृतिवाला बना दिया है। सर्वहारा की पार्टी नहीं रही। चन्द्रशेखरन खुलकर अपनी पार्टी की दक्षिणपंथी कार्यशैली की निंदा करते रहे। स्वाभाविक है पिनरायी विजयन से खुला मुकाबला हुआ। नतीजन अपनी जान गंवानी पड़ी। मगर माकपा सरकार ने हत्या पर खेद तक व्यक्त नहीं किया।
चन्द्रशेखरन को जब माकपा से निष्कासित कर दिया गया था तो उन्होंने नया दल ”क्रांतिकारी मार्क्सवादी पार्टी” बना ली। पूरे जिले में वे अत्यधिक जनप्रिय हो गये। तीव्र ईष्यावश उन्हें उनके ही पार्टी वालों ने हमेशा के लिये हटा दिया। अत: उनकी विधवा रमा अब चुनाव द्वारा माकपा से प्रतिशोध कर रही है। सोनिया—कांग्रेस ने यह सीट रमा के लिये छोड़ दिया है।
मगर माकपा और मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। माकपा ने चार निर्दलीय प्रत्याशियों से नामांकन दाखिल करा दिया। नौ उम्मीदवारों में चार रमा के नामाराशि है। अत: असली रमा की मुश्किल और मशक्कत बढ़ गयी है।
रमा के विरोध में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा के एक घटक जनता दल (सेक्युलर) के प्रत्याशी हैं। भाजपा का भी एक है। यूं अमूमन केरल में शरारत के तौर पर कमजोर विपक्षी उम्मीदवार अपने सशक्त प्रत्याशी की नामाराशि वाले कई प्रत्याशियों के नामांकन दाखिल करा देतें हैं।
मसलन मशहूर कांग्रेसी प्रत्याशी शशि थरुर के विरुद्ध तिरुअनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र से 2009 में दो और शशि थरुर नामक उम्मीदवार थे। दोनों को मिलाकर आठ हजार वोट मिले। हालांकि असली थरुर की जीत की मार्जिन दस हजार थी। हार से बच गये। मगर केरल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष वीएम सुधीरन के नामवाले भी दो और 2004 निर्वाचन में चुनाव लड़ रहे थे। असली सुधीरन केवल एक हजार वोट से हारे, जबकि उनकी नामा​राशि वालों को 8281 वोट मिले थे। ये वोट शायद कांग्रेस अध्यक्ष को ही मिलते। वोटरों के भ्रम के कारण वे पराजित हो गये।
केरल विधानसभा निर्वाचन में कई अजूबे होते रहे है। माकपा मुख्यमंत्री विजयन का विरोध नब्बे—वर्षीय पूर्व सीएम वीएस अच्युतानन्द खुलकर कर रहे हैं। उनका मानना है कि मार्क्सवाद के चिंतन, दर्शन और सिद्धांतों को तिलांजलि देकर विजयन उसे दक्षिण पंथी, प्रतिक्रियावादी, पूंजीवादी ढर्रे पर ले जा रहे है।
वे बार—बार मुख्यमंत्री की सोना तस्करी में लिप्तता की ओर इशारा करते है। इसलिये माकपा को अपार हानि हो रही है। मगर मसला यह है कि येचूरी सीताराम और प्रकाश करात जो स्वच्छतावादी है, इस गंदगी को क्यों सह रहे हैं? छह अप्रैल को उत्तर मिल जायेगा।
रमा की उम्मीदवारी की तरह विधवा वी. भाग्यवती भी संघर्षशील हैं। वे मुख्यमंत्री के विरुद्ध धर्मादम क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ रही है। उसकी नौ और तेरह वर्ष की दो पुत्रियों का माकपा के गुण्डों ने बलात्कार और हत्या कर दिया था। भाग्यवती भी जनता से न्याय पाने की अपील पर चुनाव लड़ रहीं हैं। वडकर और धर्मदम विधानसभा के परिणाम भले ही शहीदों की विधवाओं के माकूल न हों, पर माकपा की कचूमर निकल जायेगी।
(द इनसाइड स्टोरी परिवार के संरक्षक के. विक्रम राव का शुमार देश के नामचीन पत्रकारों में होता है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर उन्होंने इमरजेंसी तक में स्वतंत्र आवाज के लिए जेल यात्रा की। महीनों की सजाएं भुगती। श्री राव,  वॉयस ऑफ अमेरिका, टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनोमिक टाइम्स, फिल्मफेयर और इलस्ट्रेटेड वीकली में प्रमुख पदों पर रहने के साथ-साथ नेशनल हेराल्ड के संस्थापक संपादक भी रह चुके हैं। प्रेस की नियामक संस्था ‘भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य रहने के अलावा मजीठिया वेतन बोर्ड और मणिसाना वेतन बोर्ड के सदस्य के तौर पर पत्रकारों के हित में लंबा संघर्ष किया है। के.विक्रम राव, फिलहाल इंडियन फैडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट #IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। )

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