भाई-बहन के रिश्तों में जहर घोल रहे जमीन के लालच को खत्म करने की कोशिश पड़ी भारी

दीगोद तहसीलदार निलंबित, विभागीय कार्यवाही की लटकी तलवार

  • रक्षा बंधन को यादगार बनाने के लिए दीगोद तहसीलदार ने बहनों से की थी स्वेच्छा से हक त्याग की अपील
  • आचरण नियमों के उलंघन पर राजस्व मंडल ने किया सस्पेंड, कलेक्टर से विभागीय कार्रवाई के लिए प्रस्ताव मांगे
केस-1 
सांगोद निवासी राजेश (बदला हुआ नाम) चार बहनों का अकेले भाई है, लेकिन बीते 20 साल से घर आना जाना तो दूर, बातचीत तक बंद है। राजेश के पिता ने मरने से पहले ही चारों बहनों की धूम धाम से शादी की। जरूरत-बेजरूरत पैसे-कौड़ी से खूब मदद की थी। वसीयत कर पैत्रिक जमीन में बेटे के बराबर बेटियों को हिस्सा भी दिया, लेकिन जब राजेश ने कोटा की पॉश कॉलोनी में अपने रहने के लिए मकान बनवाया। राजेश से गलती यह हुई कि पिता के जाने के बाद उसने यह घर मां के नाम से खरीदा था। घर परिवार से संपन्न होने के बावजूद एक बहन की इस घर पर नीयत खराब हो गई। बस फिर क्या था, मां के नाम से संपत्ति होने के कारण उसने घर पर अपना हक जता अदालत का दरवाजा खटखटा दिया। एक बहन की देखा देखी बाकी भी उसी राह चल पड़ीं। बस वो दिन है कि आज का दिन राजेश और उसकी बहनें एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देखना चाहतीं।
केस-2 
दीगोद तहसील के नानक राम (बदला हुआ नाम ) की कलाई हर साल सूनी रहती है, क्योंकि उनकी बहनें उनसे घर पर नहीं अदालत में मिलती हैं। हुआ यूं कि सड़क बनाने के लिए सरकार ने नानक राम के खेतों का अधिगृहण किया था। सरकार ने तो मुआवजे की रकम अच्छी खासी दी, लेकिन जब नानक राम का चैक उसके पास पहुंचा तो वह ठगा सा रह गया। इतनी कम रकम मिलने की वजह पूछने पटवारी के पास गया तो पता चला कि उसकी पैत्रिक जमीनों से शादी के बाद भी बहनों ने स्वेच्छा से अपना हक नहीं छोड़ा था। ऐसे में वह भी मुआवजे की हकदार हो गईं। जिसे लेकर उसके और बहनों के बीच आज भी मुकदमेबाजी चल रही है।

TISMedia@Kota राजेश और नानक राम अकेले नहीं हैं… जमीन के लालच ने जिनकी बहनों से रिश्तों में जहर घोल रखा है। शादी के बाद जब तक बेटी अपनी मर्जी से पैत्रिक जमीन-जायदाद का हक नहीं छोड़ती तब तक वह उसकी हिस्सेदार बनी रहती है। नतीजन, जब इन्हें बेचने की बारी आती है तो कानूनी तौर पर मिले इस हक के लिए अक्सरकर राखी के रिश्ते भी दांव पर लग जाते हैं। भाइयों का आरोप होता है कि उन्होंने बहनों की शादियों में हैसियत से ज्यादा खर्च किया और बहनों का आरोप होता है कि उन्हें तो कुछ भी नहीं मिला।

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भाई बहनों के बीच अदावत की बड़ी वजह बन चुकी इस छोटी सी वजह को खत्म करने की कोशिश की थी कोटा की दींगोद तहसील के तहसीलदार दिलीप प्रजापति ने। रक्षाबंधन के मौके पर उन्होंने भाई बहन के रिश्ते को खुशियों की नई सौगात देने के लिए दिलीप प्रजापति ने अपनी तहसील की बहनों से रक्षाबंधन को यादगार बनाने के लिए अपने भाइयों के लिए स्वैच्छिक हक त्याग करने की अपील की थी।

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रिश्ते बचाने के चक्कर में दांव पर लगी नौकरी 
तहसीलदार दिलीप सिंह की कोशिश थी कि जमीन के जरा से लालच के चक्कर में सालों बाद दरकने वाले भाई बहन जैसे प्रगाढ़ रिश्तों को बचाया जा सके। इसके साथ ही बेवजह बढ़ने वाले मुकदमों के बोझ और इस पर होने वाले भाई बहनों के आर्थिक बोझ को खत्म किया जा सके, लेकिन उनकी नेक नीयति उन्हीं पर भारी पड़ गई। दीगोद तहसीलदार के “बहनों से स्वैच्छिक हक त्याग” की अपील कुछ महिला संगठनों को रास नहीं आई और उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया। इन संगठनों के लिए रिश्तों से ज्यादा जमीन जायदाद मायने रखती थी। इसीलिए दीगोद तहसीलदार की कोशिशों का स्वागत करने और सक्षम लोगों को इसके लिए तैयार करने की बजाय उन्होंने इसे लड़कियों के हक पर डाका करार दे डाला।

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तहसीलदार को किया निलंबित 
रक्षाबंधन के दिन बहिनों से हक त्याग की अपील करने वाले दीगोद तहसीलदार दिलीप प्रजापति को सस्पेंड किया गया है। राजस्व मंडल के निबंधक बीएल मीना ने इस संबंध में आदेश जारी किया है।  साथ ही कलेक्टर कोटा से उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए प्रस्ताव मांगे हैं। राजस्व मंडल के निबंधक के आदेश के मुताबिक, दीगोद तहसीलदार को आचरण नियमों का उल्लंघन किए जाने पर तुरंत प्रभाव से सीसीए नियम 13 (1) के तहत निलंबित करते हुए मुख्यालय राजस्व मंडल अजमेर कार्यालय किया गया है।

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क्या कहा था तहसीलदार ने 
दीगोद तहसीलदार ने रक्षाबंधन को यादगार बनाने के लिए बहनों से स्वैच्छिक हक त्याग करवाने की अपील करते हुए इस सम्बंध में स्थानीय लोगों के लिए एक पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने गुजारिश की थी कि जब किसी खातेदार की मौत होती है तो उसके प्राकृतिक उत्तराधिकारी के रूप में बेटे- बेटी व पत्नी का नाम उसकी जगह खाते में दर्ज हो जाता है। बहन-बेटियां खाते की जमीन एवं अचल संपत्ति में से पीहर में हक नहीं लेती है। ससुराल की संपत्ति में ही अपना हक लेती है। वह पीहर की जमीनों में स्वेच्छिक हक त्याग करना भी चाहती है, लेकिन लापरवाह खातेदार या किसान समय पर हक त्याग नहीं कराते हैं। ऐसे में मुआवजे के चेक खातेदार बहन-बेटियों के नाम से जारी हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में कुछ बहनें चेक की राशि अपने भाइयों को नहीं लौटती है और जिंदगीभर दोनों के बीच रिश्तों में खटास आ जाती है। जिंदगी भर लडाई झगड़ा, कोर्ट केस होता है। इसीलिए इस रक्षाबंधन को खास बनाने के लिए उन्होंने बहनों से स्वेच्छा से हक त्याग कराने की अपील की थी।

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