चिट्ठी में छलका डॉक्टर का दर्द, बोलेः कितने भी संसाधन जुटा लें, इस महामारी में कम पड़ेगे…

प्यारे शहरवासियों, एक पति पत्नी और उनका 11-12 साल का बच्चा मेरे पास आए। लक्षणों के हिसाब से तीनों कोविड पॉजिटिव थे। मासूम बच्चा बाहर बैठा और उसके माता-पिता अंदर मुझे दिखाने आए। पति की स्थिति क्रिटिकल थी, उन्हें खड़ा भी नहीं रहा जा रहा था। मैंने चेकअप किया तो दोनों का सेचुरेशन फॉल हो रहा था। मैंने दोनों को तत्काल भर्ती होने को कहा, लेकिन पलटकर उन्होंने पूछा-सर, कहां भर्ती हों?– डॉ. राजेन्द्र ताखर

इसके बाद मेरे पास कोई जवाब नहीं था। क्योंकि पूरे शहर में एक भी रोगी को भर्ती करने लायक स्थिति नहीं है। यह दंपती मूल रूप से जयपुर का रहने वाला है और यहां जॉब करते हैं। उनके इस सवाल पर मैं निरुत्तर था। बताता भी क्या, फिर जब उन्होंने जयपुर निवासी होने की बात कही तो मैंने उन्हें यही सलाह दी कि जयपुर जाकर एडमिट होने का प्रयास करें, वरना बड़ी दिक्कत हो सकती है। भगवान करें, दोनों सलामत रहें और उनका बच्चा भी…। इस किस्से को बताने का मेरा मकसद सिर्फ इतना सा है कि इस तरह की महामारी जब भी फैलती है, चिकित्सा संसाधन कितने ही जुटा लो, कम पड़ते हैं। आज हमारे कोटा में यही हो रहा है। इसलिए मेरी आप सभी से हाथ जोड़कर विनती हैं कि अब थोड़ा गंभीर हो जाइए। घरों पर रहिए, मास्क पहनिए और बार-बार हाथ धोइए।

एक हफ्ते तक लंबे सोच-विचार के बाद आपके नाम यह पत्र लिखने का निर्णय कर पाया हूँ। यह नौबत इसलिए आई, क्योंकि शहर पर बड़ा संकट है। मैने बीते एक साल में कभी कोविड मरीजों को देखने से मना नहीं किया, लगातार ओपीडी सेवाएं जारी रखी और इसी के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज व्यवस्थाओं में भी अपना सौ प्रतिशत दे रहा हूं। लेकिन अब लगता है, जैसे हिम्मत जवाब देने लगी है। इसकी वजह यह नहीं कि हम हार रहे हैं, बल्कि संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।

अब यह बात आपको बखूबी समझ लेनी चाहिए कि जैसी तस्वीरें हम कुछ दिन पहले गुजरात या मध्यप्रदेश की देखा करते थे, वैसी अपने शहर में दिखने लगी है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद हम लोग लापरवाह कैसे बने हुए हैं? क्यों नहीं हम, यहीं इस महामारी को रोकना का प्रयास कर रहे? पिछले सात दिन से तड़के तीन बजे तक मरीज देख रहा हूं। रात को रोजाना सोचता हूं कि आज क्लीनिक नहीं जाऊंगा, लेकिन दूर-दूर से आए मरीज रात एक बजे तक मेरे क्लीनिक से उठने का नाम नहीं लेते। फिर उठकर चला जाता हूं। मशीन की तरह मैं या मेरे जैसे सभी डॉक्टर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद कुछ नहीं कर पा रहे।

बहुत सारे लोग लॉकडाउन का विरोध करते हैं, उनकी अपनी पीड़ा हो सकती है, लेकिन दोस्तों… तड़प-तड़पकर मरने से बेहतर है, कुछ दिन कम खा लीजिए। कुछ गलत लिखा हो तो माफ कीजिएगा…। लेकिन, पति-पत्नी के किस्से से आप स्थिति की गंभीरता को समझ पाए होंगे। ऐसी मुझे पूरी उम्मीद है।

(डॉ. राजेन्द्र ताखरः एसोसिएट प्रोफेसर, श्वांस रोग विभाग, मेडिकल कॉलेज कोटा। डॉ. ताखर कोटा के सर्वाधिक कोविड मरीज देखने वाले चिकित्सकों में से एक हैं। गर्व की बात यह है कि उन्होंने हालात बेहद भयावह होने के बाद भी अपनी सेवाएं देना बंद नहीं किया है।)

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