खुलासाः facebook बना फेकबुक, भारत में फैला रहा झूठ और नफरत

कंपनी की अंदरूनी रिपोर्ट में खुलासा, फर्जी खातों की निगरानी में कंपनी नाकाम

  • भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं, लेकिन फेसबुक 5 भाषाओं की ही कर पा रहा निगरानी
  • कर्मचारियों ने ही जारी की ‘विरोधात्मक और नुकसानदेह नेटवर्क भारत एक केस स्टडी’

TISMedia@Desk भारत में फेसबुक फरेब और हिंसा ही नहीं फर्जी खबरें फैलाने का भी जरिया बन गया है। इस बात का खुलासा कंपनी की ही एक अंदरूनी रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में कंपनी की नीतियों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा गया है कि “भारत उसके लिए विश्व का सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन खामियां सुधारने के लिए उठाए उसके कदम, लोगों की जान की कीमत पर महज प्रयोग से ज्यादा कुछ नहीं हैं।”

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‘विरोधात्मक और नुकसानदेह नेटवर्क भारत एक केस स्टडी’ नामक इस दस्तावेज को कंपनी के ही अध्ययनकर्ताओं ने तैयार किया है। इसके अनुसार फेसबुक पर ऐसे कई ग्रुप व पेज चल रहे हैं, जो समाज के कमजोर तबकों के खिलाफ काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं बहुसंख्यकों को भड़काने वाले समूहों की भी रत्ती भर कमी नहीं है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इन भ्रामक पोस्ट का दुष्प्रभाव पूरे भारत और चुनाव प्रक्रिया पर भी हो रहा है। ये खामियां कैसे दूर होंगी? यह सब उसे खुद भी पता नहीं है। यहां तक कि खुद बिगाड़े इन हालात को सुधारने के लिए उसने उचित संख्या में स्टाफ या संसाधन भी नहीं रखे और इसके लिए पैसा खर्च करना वह बेकार मानता है।

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सबूतों के साथ तैयार की रिपोर्ट
फेसबुक के अवैध कार्यों की जानकारी दे रही यह रिपोर्ट उसकी पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस ह्यूगन ने फेसबुक के कई अहम दस्तावेज के साथ तैयार की है। 2019 के आम चुनाव के बाद भी भारत पर ऐसी ही रिपोर्ट में फेसबुक द्वारा झूठी खबरें फैलाने व व्यवस्था बिगाड़ने की पुष्टि हुई। उसके अनुसार पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा देखे गए कंटेंट के 40 फीसदी व्यू फर्जी थे। वहीं 3 करोड़ भारतीयों तक पहुंच रखने वाला अकाउंट अनधिकृत मिला।

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खुद कर्मचारी ने बताई आपबीती
इस रिपोर्ट में एक कर्मचारी ने बताया कि उसने फरवरी 2019 में खुद को केरल का निवासी बताते हुए फेसबुक अकाउंट बनाया और इसे अगले तीन हफ्ते तक चलाया। फेसबुक के अल्गोरिदम ने जो कंटेंट पेश किया, नए-नए पेजों व समूहों से जुड़ने की जो सिफारिशें की, उन्हें वह पढ़ता, देखता और मानता गया। परिणाम में नफरत भरी व हिंसा उत्सव मनाने वाली सामग्री और झूठी सूचनाओं के सैलाब से उसका सामना हुआ।

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कैसे रोके फर्जी अकाउंट
फेसबुक की अंदरूनी रिपोर्ट के अनुसार उसके पास अपने सबसे बड़े बाजार भारत के लिए इतने संसाधन नहीं हैं और न ही वह इस पर खर्च करना चाहता है, ताकि खुद उसी द्वारा पैदा की झूठ, भ्रामक खबरें और हिंसा फैलाने की समस्या दूर कर सके। फेसबुक के प्रवक्ता एंडी स्टोन एक ओर दावा करते हैं कि कंपनी ने नफरती सामग्री को इस साल 50 प्रतिशत कम किया है, दूसरी ओर मानते हैं कि भारत में वंचित समुदायों व मुसलमानों के खिलाफ उसके प्लेटफॉर्म से नफरत बढ़ाई जा रही है। 10 साल से फेसबुक में पब्लिक पॉलिसी निदेशक केटी हर्बाथ मानती हैं कि फेसबुक के पास संसाधन कम हैं, लेकिन यह भी कहती हैं कि समस्याओं का समाधान उन पर पैसा फेंकने से नहीं निकल सकता। कैसे निकलेगा उसे इसका अंदाजा भी नहीं है।

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कोरोना महामारी को भी नहीं छोड़ा
दस्तावेज के अनुसार जुकरबर्ग ने अपने प्लेटफॉर्म को ‘अर्थपूर्ण सामाजिक संवाद’ पर केंद्रित रखने के लिए कदम उठाए। लेकिन इनके जरिये भारत के बारे में झूठी खबरें व सूचनाएं ही फैलाई गईं। यहां तक कोरोना महामारी को भी नहीं बख्शा गया।

22 आधिकारिक भाषाएं, केवल पांच की निगरानी
रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं, लेकिन फेसबुक का अल्गोरिदम केवल 5 भाषाओं पर निगरानी रख पा रहा है। इसलिए भड़काऊ सामग्री उचित मात्रा में रोकने में वह नाकाम रहा है। राजनीतिक दलों से जुड़े कई फर्जी अकाउंट, चुनाव प्रक्रिया पर भ्रम फैलाती व मतदाताओं के खिलाफ सामग्री तक वह नहीं रोक पाया है। इन सबसे बड़ी बड़ी बात यह है कि फेसबुक पर अब खुलेआम पोर्न कंटेट परोसा जा रहा है, लेकिन उसे रोकने का कोई तरीका उसके पास नहीं है। जबकि गंभीर मसलों पर लेख लिखने और जानकारियां देने वाले लोगों को लगातार निशाना बना कर उनके खाते ब्लाक किए जा रहे हैं। जिससे सामाजिक चेतना रखने वाला तबका फेसबुक से छिटकने लगा है।

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