जज्बे को सलाम: प्लान B क्या है…!

TISMedia@VineetSingh भले ही रात अपने ढलान पर थी, लेकिन हवाएं अब भी सुलग रही थीं…। रत्ती भर भी नरमी न थी मौसम के मिजाज में…। बेरुखी तकरीबन चिढ़चिढ़ाहट में तब्दील होने लगी थी, मिरे मिजाज की। हर सूं इसी कोशिश में था कि जितना जल्दी हो सके घर पहुंचूं। मारे गुस्से के कार का एक्सीलेटर तकरीबन मेरे पैरों ने मसल कर रख दिया था। दरवाजे पर पहुंचने से पहले ही हॉर्न हिनहिनाने लगा। गार्ड गेट खोलकर तैयार खड़ा था और मैं दनदनाता अंदर दाखिल हो गया। कार पार्क की और झटके से गेट को बंद कर लिफ्ट की ओर दौड़ पड़ा, लेकिन तभी अचानक मेरे कदम ठिठक गए।

पीछे के दरवाजे पर एक परछाईं जान पड़ी। नजर दौड़ाई तो एक दुबला पतला लड़का कुर्सी में धंसा बैठा था। सिलेटी वर्दी, आंखों पर चश्मा और हाथ में एक किताब। किताब… इतने अंधेरे में कोई किताब कैसे पढ़ सकता है। जितनी तेजी से दिमाग में सवाल उछला उससे भी तेज मेरे कदमों ने मुझे उसके सामने ला धकेला।

एक नजर उसकी किताब में जा धंसी और दूसरी कलाई पर बंधी घड़ी में। 3 बजकर 36 मिनट…। क्या कर रहे हो अंधेरे में?
साब! पढ़ रहा हूं।
पढ़ाई…क्या पढ़ रहे हो इतने अंधेरे में। कुछ दिखाई भी दे रहा है?
साब! एनसीईआरटी की किताब है।
अरे कोई सब्जेक्ट भी तो होगा?
सर वो हिस्ट्री है।
हिस्ट्री! किसी कॉम्पटीशन की तैयारी कर रहे हो?
जी सर।
किसकी?
सर, सिविल की।
क्या? सिविल की तैयारी? कितने पढ़े हो भाई?
साब! एमए किया है। हिस्ट्री से।
नाम क्या है तुम्हारा?
सर, हर्ष वर्धन
हर्ष वर्धन क्या… सिंह, शर्मा… क्या?
सर, हर्ष वर्धन मीणा।
पिताजी क्या करते हैं?
माइंस में जॉब करते हैं।
जॉब? क्या…?
सर, जॉब मतलब मजदूरी। (उसकी झिझक कहूं या फिर अचानक हुए सवालों के हमला जो जबान लड़खड़ा गई)
ओह!
और तुम, कलक्टर बनना चाहते हो…! (नहीं जानता कि यह तंज था या फिर उसकी हौसला अफजाई)
जी, कोशिश तो यही है। (जमीन में धंसने के अंदाज में बेहद मासूमियत से बोला)
फिर, कोचिंग क्यों नहीं करते और नौकरी करनी है तो कोई अच्छी सी करो।
सर, आपके सवाल दो हैं और मेरा जवाब एक… पैसे नहीं हैं इतने।
आईएएस न बन सके तो?
प्लान B नहीं है मेरे पास। बनूंगा तो कलक्टर ही। चाहे जान ही क्यों न झौंकनी पड़ जाए।
एक टक मैं हर्ष वर्धन को देखता रह गया। देखता रह गया उसके चट्टान जैसे मजबूत हौसले। जिसके आगे स्याह मजबूरियां भी बौनी हो चुकी थीं। मेरे सवाल अब चूक चुके थे। तभी महसूस किया कि अचानक एक सर्द सा झोका मेरे माथे को चूमता उधर से गुजरा। नजर पूनम के पूरे चांद और भावी कलक्टर के चेहरे पर टिक गई। दोनों ही मुस्कुरा रहे थे। सारी तपिश पल भर में छू मंतर हो गई। बचा रह गया तो सिर्फ और सिर्फ एक बर्फ के फाहे जैसा खुशियों से भरा नर्म अहसास…।
दोस्त कभी जरूरत लगे तो याद करना… और हां धन्यवाद यह समझाने कि लिए कि जिंदगी में कभी प्लान बी नहीं होता…। खास तौर पर उनके लिए तो कतई नहीं जिन्होंने कुछ कर गुजरने की ठान रखी हो। क्योंकि, विकल्प कभी संकल्प की जगह नहीं ले सकते।

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